शुक्रवार को लेबनान की राजधानी बेरूत पर हवाई हमले के बाद इजरायल ने हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत का ऐलान करते हुए इसे बड़ी जीत बताया। नसरल्लाह और दूसरे कमांडरों की मौत हिजबुल्लाह के लिए निश्चित रूप से गंभीर झटका है। हिजबुल्लाह क्षेत्र में काफी ताकतवर रहा है। लेबनान पर पकड़ के चलते माना जा रहा है कि ये गुट लड़ाई जारी रखेगा। वहीं देश की खस्ताहाल होती अर्थव्यवस्था और लेबनानी लोगों में शोषण से पनपे गुस्से से ये भी लगता है कि इजरायल के खिलाफ ये गुट अब कमजोर पड़ जाएगा।
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, लेबनान में 60 के दशक तक ईसाई बहुसंख्यक थे और देश काफी समृद्ध था। 1948 और फिर 1967 में हजारों फिलिस्तीनियों के आने के बाद जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ और मुस्लिम बहुसंख्यक बन गए। वहीं लेबनान में अशांति की शुरुआत फतह और फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के आने से हुई। जॉर्डन के राजा हुसैन बिन तलाल के बेदखल करने के बाद फतह और पीएलओ के लोग आए और लेबनान का भविष्य बदल गया।
1975 में पूरी तरह बदल गईं चीजें
साल 1975 के बाद लेबनान पूरी तरह से बदल गया जब ईसाई मिलिशिया और पीएलओ विद्रोहियों के बीच 15 साल तक गृहयुद्ध चला और देश एक गहरे रसातल में चला गया। इस युद्ध में 1,50,000 लोग मारे गए और करीब 10 लाख को देश छोड़ना पड़ा। इसने लेबनान की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया, जिससे वह आज तक कभी नहीं उबर पाया।