यमन के ईरान से समर्थन वाले हूती विद्रोही लाल सागर में कमर्शियल जहाजों को निशाना बना रहे हैं। इससे दुनिया की कई बड़ी शिपिंग कंपनियों ने इस रूट पर अपना ऑपरेशन रोक दिया है। वे अब ब्लैक सी रूट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे भारत में फ्रेट चार्ज बढ़ने से महंगाई के बेकाबू होने का खतरा बढ़ गया है। इस संकट का असर भारत पर पड़ना शुरू हो गया है। हाल में हूती विद्रोहियों ने भारत के क्रूड कैरियर एमवी साई बाबा पर दक्षिणी लाल सागर में ड्रोन से हमला किया। साथ ही भारत के लिए कच्चा तेल ला रहे लाइबेरिया के एक जहाज को अरब सागर में भारत के एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन के बाहर निशाना बनाया गया। भारत का 65% कच्चा तेल स्वेज नहर के रास्ते आता है जबकि 50% एक्सपोर्ट भी इसी रास्ते होता है। स्वेज नहर लाल सागर और भूमध्यसागर को कनेक्ट करती है।
लाल सागर यूरोप और एशिया के बीच व्यापार का मुख्य समुद्री रास्ता है। इससे स्वेज नहर के रास्ते होने वाले कारोबार पर भी खतरा पैदा हो गया है। 193 किमी लंबी इस नहर का ग्लोबल ट्रेड में 12% योगदान है। दुनिया का 30% कंटेनर मूवमेंट इसी रास्ते से होता है। हूती विद्रोही कई जहाजों पर ड्रोन और एंटी-शिप मिसाइलों से हमला कर चुके हैं। इससे दुनिया की चार बड़ी शिपिंग कंपनियों MSC, CMA CGM, Hapag Lloyd और Maersk ने लाल सागर के रास्ते अपने ऑपरेशन रोक दिए हैं। ग्लोबल मेरिटाइम ट्रेड में इन चार कंपनियों की ग्लोबल मेरिटाइम ट्रेड मे 53% हिस्सेदारी है। साथ ही ऑयल सेक्टर की बड़ी कंपनी बीपी ने अपने जहाजों का मुंह लाल सागर से मोड़ दिया है।
15 दिन लंबा चक्कर
जहाजों को अब ब्लैक सी के लंबे रास्ते को इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इससे जहाजों को यूरोप से भारत पहुंचने में 15 दिन का ज्यादा समय लगता है। इससे फ्रेट कॉस्ट बढ़ने से भारत के ट्रेड पर भी भारी असर पड़ने की आशंका है। लागत बढ़ने का साथ-साथ कंटेनर सप्लाई की समस्या भी हो सकती है। शिपिंग इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि जहाजों की कॉस्ट बढ़ जाएगी। इनकी एक दिन की लागत 60,000 डॉलर बैठती है। इंडिया-यूरोप रूट पर कंटेनर की कॉस्ट 1.5 से दोगुना बढ़ जाएगी। अब तक फ्रेट रेट्स में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला है लेकिन आने वाले दिनों में इसका असर दिखने की आशंका है। शिपिंग इंडस्ट्री के एक सूत्र ने कहा कि कैपेसिटी में कम से कम 20 से 25 फीसदी असर देखने को मिल सकता है।
भारत का क्या लगा है दांव पर
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ट्रेड और एनजी इम्पोर्ट के लिए इस रूट पर निर्भर है। उसके लिए लागत और सुरक्षा का जोखिम बढ़ गया है। भारत को ट्रेड रूट डाइवर्सिफाई करने और रीजनल मेरिटाइम सिक्योरिटी कोऑपरेशन बढ़ाने की जरूरत है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत को अपने एनर्जी इम्पोर्ट को डाइवर्सिफाई करने की जरूरत है ताकि बाब अल-मंदेब स्ट्रेट पर निर्भरता कम की जा सके। यानी भारत को फारस की खाड़ी, अफ्रीका और मध्य एशिया से तेल का इम्पोर्ट बढ़ाना चाहिए। दुनिया का 30 परसेंट कंटेनर मूवमेंट अल-मंदेब स्ट्रेट के रास्ते से होता है। इसे लाल सागर का गेटवे कहा जाता है और यह हॉर्न ऑफ अफ्रीका और अदन की खाड़ी के बीच स्थित है।