ब्रेड एंड पीस’ मूवमेंट : महिलाओं का वो आंदोलन, जिसने रूस में ला दी थी क्रांति

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International women’s day 2021: दुनियाभर में आज (सोमवार, 8 मार्च) महिला दिवस मनाया जा रहा है। हर किसी के जीवन में महिलाओं का खास स्‍थान होता है। मां, बहन, पत्‍नी के रूप में महिलाएं हमेशा से स्‍त्री हो या पुरुष, हर किसी के जीवन में अहम भूमिका निभाती रही हैं। महिलाओं के अधिकारों, उन्‍हें समान अवसर दिए जाने और उन्‍हें लेकर जागरुकता बढ़ाने को समर्पित इस दिन का अपना महत्‍व है। लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा कि इसकी शुरुआत कैसे हुई?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक मजदूर आंदोलन की उपज है, जिसका बीजारोपण साल 1908 में हो गया था, जब अमेरिका के न्‍यूयार्क में करीब 15 हजार महिलाओं ने नौकरी के घंटों में कमी, बेहतर वेतन, कामकाज की बेहतर परिस्थितियां और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्‍सेदारी यानी मतदान के अधिकार की मांग को लेकर सड़कों पर मार्च निकाला था। एक साल बाद 28 फरवरी 1909 सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर यहां पहली बार महिला दिवस मनाया गया। लेकिन यह अभी अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर चर्चित नहीं हुआ था।

8 मार्च ही क्‍यों?

अगले ही साल यानी 1910 में इसका स्‍वरूप अंतरराष्‍ट्रीय हो गया, जब कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं के एक अंतरराष्‍ट्रीय सम्‍मेलन में इसे वैश्विक स्‍तर पर मनाने का सुझाव पेश किया गया। उस सम्‍मेलन में 17 देशों की 100 महिलाएं मौजूद थीं, जिन्‍होंने इस सुझाव का समर्थन किया। इन पड़ावों से होकर गुजरे अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस को 1975 में उस वक्‍त आधिकारिक मान्‍यता मिली, जब संयुक्‍त राष्‍ट्र ने इसे थीम के साथ हर साल मनाने का फैसला किया। लेकिन क्‍या आप जानते हैं इसके लिए 8 मार्च की तारीख की क्‍यों चुनी गई?

अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को ही मनाए जाने का सीधा संबंध रूस में 1917 में हुई उस क्रांति से है, जिसने जारशाही का अंत कर दिया। यह वो दौर था, जब रूस की जनता तत्‍कालीन जारशाही से आजिज आ गई थी। कुछ ही समय प्रथम विश्‍वयुद्ध समाप्‍त हुआ था। इसमें रूसी गठबंधन को हालांकि जीत मिली थी, लेकिन इस युद्ध ने आम लोगों के जीवन में कई मुश्किलें ला दी थी।

…जब ठप हो गया था कामकाज

युद्ध में लोगों ने अपनों को खोया तो बाजार में खाने-पीने की चीजों की किल्‍लत भी पैदा हो गई थी। फैक्ट्रियों में कामकाज को लेकर परिस्थितियां बहुत कठिन थी। युद्ध से आजिज जनता शांति के पक्ष में थी। वे जार के शासन से भी मुक्ति चाहते थे। ऐसे में बड़ी संख्‍या में महिलाएं सड़कों पर उतर गईं, जिनमें मुख्‍य रूप से उद्योग जगत से जुड़ी यानी फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाएं शामिल थीं। उन्‍होंने पुरुषों से भी अपनी मुहिम को समर्थन देने की अपील की, जिसका नतीजा यह हुआ कि तकरीबन 90 हजार लोग हड़ताल पर चले गए।

रूस में महिलाओं की उस मुहिम का नाम ‘ब्रेड एंड पीस’ (यानी खाना और शांति) था, जिसने वहां के तत्‍कालीन सम्राट निकोलस को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद जो अंतरिम सरकार सत्‍ता में आई, उसने महिलाओं को मतदान का अधिकार भी दिया। उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का इस्‍तेमाल होता है, जिसके हिसाब से महिलाओं ने जब हड़ताल की शुरुआत की थी तो वह फरवरी की 23 तारीख थी। लेकिन ग्रेगेरियन कैलेंडर के हिसाब से वह 8 मार्च की तारीख थी। उसके बाद ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है।

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