मैनपुरी में त्रिकोणीय मुकाबला, डिंपल यादव की राह क्‍यों आसान नहीं, समझिये समीकरण

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मैनपुरी में इस बार क्‍या होगा, इस पर सभी की निगाहें हैं। इस क्षेत्र को सपा का गढ़ माना जाता रहा है। ऐसा कहने के पीछे आधार है। गत 28 वर्षों से यहां सपा ही जीतती रही है। बसपा को यहां निराशा हाथ लगी। भाजपा ने भी कोशिशें की पर सफलता नहीं मिली। यहां जीत की कीर्तिमान बनाए रखने के लिए अब सपा ने पूर्व सीएम अखिलेश यादव की पत्‍नी डिंपल यादव पर दांव लगाया है। इससे पहले भी वह उप चुनाव में सांसद बन चुकी हैं। इस बार भाजपा के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह मैदान में हैं और बसपा ने गुलशन देव शाक्‍य को मैदान में उतारा है। ऐसे में अब मैनपुरी में चुनावी दौर गरमा गया है।

मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र को मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक कर्मभूमि माना जाता है। मुलायम ने यहां दो बार सीट छोड़ी थी और दोनों ही बार परिजनों को सांसद बनाया था। 2022 में उनके देहांत के बाद उप चुनाव हुआ तो उनकी बहू डिंपल यादव सांसद चुनी गईं। यहां यादव बहुल है। क्षेत्र में 4 लाख से अधिक यादव वोटर हैं। फिर शाक्‍य वोटर्स हैं जो ढाई लाख से अधिक हैं। सपा ने एटा जिले से शाक्‍य प्रत्‍याशी को मैदान में उतारा है। एक माह से डिंपल यादव खुद प्रचार में जुटी हैं।

भोगांव निवासी कृष्‍ण स्‍वरूप शाक्‍य कहते हैं कि मैनपुरी का सैफई परिवार से नाता रहा है। कई लोग यहां जातीय समीकरण से परे हैं। बीते कुछ वर्षों में भाजपा का कद बढ़ा तो यहां भी असर दिखा। 2014 में बीजेपी ने एएस चौहान को यहां उतारा था। तब वो मुलायम सिंह बड़े अंतर से हारे थे। फिर 2019 में बीजेपी के संगठन के विस्‍तार का असर दिखा जब वोट प्रतिशत 20 से अधिक बढ़ा। अब इस बार भाजपा माहौल बनाने में जुटी है।

पार्टी ने पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह को नई रणनीति के तहत मैदान में उतार दिया है। वे घिरोर विधानसभा क्षेत्र से 2002, 2007 में बसपा विधायक रह चुके हैं। 2022 में उन्‍होंने सदर सीट से सपा का वर्चस्‍व तोड़ा था। शहर के रहवासी मनोज अग्रवाल का कहना है कि इस बार मुकाबला रोचक होगा।

सपा के लिए राह आसान नहीं होगी। हालांकि बसपा की मौजूदगी दोनों दलों को चुनौती दे सकती है। 2019 के चुनाव में सपा व बसपा का गठबंधन था लेकिन इस बार बसपा ने गुलशन देव शाक्‍य को उम्‍मीदवार बनाकर उतारा है। पहले के चुनाव में भाजपा व सपा में दलित वोट बंट गए थे पर इस बार बसपा प्रत्‍याशी के मैदान में आने से यह समीकरण बिगड़ सकता है। 2004 व 2009 में बसपा ने सपा को टक्‍कर दी थी पर इसके बाद 2014 में पार्टी उम्‍मीदवार तीसरे क्रम पर खिसक गया। इसके बावजूद बसपा की चुनौती कम नहीं है।

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