अमेरिका और संयुक्‍त राष्‍ट्र की आंख में धूल झोंक रहा तालिबान सरगना हैबतुल्‍ला, दोहा वार्ता में किया खेल, समझें

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कतर की राजधानी दोहा में तालिबान की अंतरिम सरकार और संयुक्‍त राष्‍ट्र के अधिकारियों के बीच बैठक हुई। तालिबानी सरकार ने संयुक्‍त राष्‍ट्र और अमेरिका समेत अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय से गुहार लगाई कि वे अफगानिस्‍तान के बैंकिंग और आर्थिक सेक्‍टर लगाए गए प्रतिबंधों को हटा लें। तालिबान की इस मांग पर अमेरिका और अन्‍य देशों ने सकारात्‍मक प्रतिक्रिया दी है। वहीं विश्‍लेषकों का कहना है कि तालिबान सरगना हैबतुल्‍ला अखुंदजादा ने विदेश मंत्री की जगह तालिबानी सरकार के प्रवक्‍ता को दोहा वार्ता में भेजकर बड़ा खेल किया है। इसे पश्चिमी देश समझ नहीं पा रहे हैं, वहीं चीन और रूस बखूबी समझ रहे हैं।

अफगानिस्‍तान के चर्चित पत्रकार और अभी कनाडा में रह रहे बिलाल सरवरी का कहना है कि कुछ महीने पहले तालिबान के अमीर हैबतुल्‍ला ने कंधार के गवर्नर मुल्‍ला शिरिन को वार्ता के लिए पाकिस्‍तान भेजा था। इसे बहुत हैरानी के साथ लिया गया था कि एक गवर्नर को किसी दूसरे देश के साथ वार्ता के लिए भेजा गया हो। यह एक ऐसा काम है जिसे विदेश मंत्रालय के स्‍तर पर निपटाया जाता है। हैबतुल्‍ला ने सतर्कता के साथ काबुल के किसी भी प्रनिधिमंडल को पाकिस्‍तान नहीं भेजा। बता दें कि तालिबान के अंदर कंधार बनाम काबुल गुट में आपसी घमासान मचा हुआ है। हैबतुल्‍ला कंधार में रहता है और उसी गुट को सपोर्ट करता है।

काबुल नहीं कंधार से होता है तालिबानी फैसला

सरवरी ने बताया कि हाल ही में संयुक्‍त राष्‍ट्र के साथ वार्ता के लिए शुरुआती दौर में तालिबानी विदेश मंत्री मुल्‍ला मुताकी और संस्‍कृति मंत्री मुल्‍ला खैरख्‍वाह का नाम लिस्‍ट में डाला गया था लेकिन बाद में उसे अचानक से बदल दिया गया। इस लिस्‍ट में जबीउल्‍लाह मुजाहिद को शामिल किया गया जो तालिबान का प्रवक्‍ता है। उसे हैबतुल्‍ला के कहने पर दोहा सम्‍मेलन में शामिल होने के लिए भेजा गया। उन्‍होंने कहा कि पश्चिमी राजनयिकों को आशंका है कि हैबतुल्‍ला ने जानबूझकर कम रैंक के जबीउल्‍लाह को दोहा भेजा ताकि वह यह दिखा सके कि उसकी अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय से जुड़ने की कोई इच्‍छा नहीं है।

बिलाल सरवरी ने कहा कि यह संदेह सही हो सकता है। तालिबान के कुछ हाई रैंकिंग अधिकारी मानते हैं कि हैबतुल्‍ला का कदम यह दिखाता है कि उसका काबुल की ‘कार्यकारी सरकार’ में भरोसा कम है। इस संदेश को ईरान, चीन और रूस को बखूबी समझ में आ गया है। तालिबान के अफगानिस्‍तान पर कब्‍जे के बाद इन देशों की सरकारें सीधे कंधार में हैबतुल्‍ला के कार्यालय और उनके करीबी लोगों के साथ ही बातचीत कर रही हैं। काबुल में बने दूतावास ज्‍यादातर खुफिया सूचना जुटाने और जासूसी के लिए किया जाता है। सरवरी ने कहा कि असली बातचीत कंधार में होती है। उन्‍होंने कहा कि यह सवाल अभी बना रहेगा कि क्‍या अमेरिका और उसके गठबंधन सहयोगी यह समझेंगे कि असली फैसला तालिबान का कहां से होता है।

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