अयोध्या पर फैसले ने धर्मनिरपेक्षता को कायम नहीं रखा… सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने क्यों कही ये बात

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और जाने-माने न्यायविद जस्टिस आर एफ नरीमन ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर निराशा व्यक्त की है। पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज ने कहा है कि अयोध्या मामले में फैसला धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं करता है।

उन्होंने यह भी कहा कि 2019 के अयोध्या फैसले में बरकरार रखे गए पूजा स्थल अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि देश भर में ‘हर दिन सामने आने वाले’ धार्मिक स्थलों पर विवादों और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वालों को रोका जा सके।

देश की स्थिति पर चिंता

पूर्व सीजेआई ए एम अहमदी की याद में स्थापित अहमदी फाउंडेशन के उद्घाटन व्याख्यान में जस्टिस नरीमन ने बताया कि कैसे बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी आरोपियों को बरी करने वाले विशेष सीबीआई जज सुरेंद्र यादव को उत्तर प्रदेश में उप लोकायुक्त के रूप में सेवानिवृत्ति के बाद नौकरी मिल गई। उन्होंने ‘धर्मनिरपेक्षता और भारतीय संविधान’ पर बोलते हुए कहा कि यह इस देश की स्थिति है।

‘न्याय का मजाक था’

उन्होंने दशकों पुराने विवाद से संबंधित शीर्ष अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि मेरी विनम्र राय में, न्याय का एक बड़ा मजाक यह था कि इन निर्णयों में धर्मनिरपेक्षता को उसका हक नहीं दिया गया। इस मामले में 9 नवंबर, 2019 को पांच जजों की पीठ ने अंतिम फैसला सुनाया था। उन्होंने मस्जिद को गिराए जाने को अवैध मानने के बावजूद विवादित भूमि को राम मंदिर के लिए देने के लिए अदालत की तरफ से दिए गए तर्क से असहमति जताई।

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