राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बड़वानी जिला मुख्यालय का कुछ अलग ही नाता है। जिला मुख्यालय के समीप बापू के अस्थि भस्म कलश का स्मारक है, वहीं बापू के अस्पृश्यता निवारण व स्वावलंबन का उदाहरण आशा ग्राम में देखने को मिलता है। 35 वर्ष पूर्व आशाग्राम ट्रस्ट की स्थापना कर कुष्ठ रोगियों का पुनर्वास किया गया। शुरुआत में कुष्ठ अंत:वासियों ने बापू के आदर्शों पर चलते हुए चरखे से सूत कातना शुरू कर स्वावलंबन की दिशा में कदम बढ़ाया, जो आगे चल कर दरी बुनाई केंद्र के रूप में तैयार हुआ। यहां कपड़ा मिलों से निकलने वाले कच्चे माल से बनाई जा रही आकर्षक व मजबूत दरियां मप्र सहित महाराष्ट्र व गुजरात में अपनी पहचान बना चुकी हैं।
जिला मुख्यालय पर कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास के लिए 13 जुलाई 1983 से आशाग्राम ट्रस्ट का संचालन किया जा रहा है। वर्तमान में 81 कुष्ठ अंत:वासी निवास करते हैं। अपने अन्य काम के अलावा ये दरियां बनाने का काम भी करते हैं। इन दरियों को बनाने के लिए कपड़ा मिलों से कच्चा माल खरीदा जाता है। कोरोना के पूर्व 20 से 25 लाख तक का टर्नओवर था, लेकिन कोरोनाकाल से कच्चा माल मिलने में दिक्कतें आ रही हैं।
पहले चरखा और अब हथकरघा से उत्पादन : कुष्ठ अंत:वासी आमरीबाई व घना गारदा ने बताया कि काम की शुरुआत चरखे से सूत कातने से की थी। इसके बाद ‘ताना-बाना’ अर्थात हथकरघा से दरी बनाने का कार्य किया। वर्ष 2003 में नवाचार करते हुए होजियरी वेस्ट को बेस्ट बनाते हुए उससे दरियां बनाई जानी लगीं।
खादी ग्रामोद्योग को देते थे सूत
आशाग्राम ट्रस्ट के सचिव डा. एसएन यादव ने बताया कि कुष्ठ अंत:वासियों द्वारा अंबर चरखे से सूत कातना शुरू किया गया था। यह सूत खादी ग्रामोद्योग को दी जाती थी, इससे खादी के कपड़ा बनते थे। अब बनाई जा रही दरियां दिखने में सुंदर व मजबूत हैं।
उन्नयन का प्रस्ताव भेजा है
कलेक्टर शिवराजसिंह वर्मा ने बताया कि आशाग्राम में कुष्ठ अंत:वासियों द्वारा दरी केंद्र पर बेहतर कार्य हो रहा है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए आकांक्षी जिले के तहत कार्ययोजना बनाकर शासन को भेजी है। इसमें करीब 500 और लोगों को प्रशिक्षण देकर बड़े पैमाने पर दरियों का उत्पादन करेंगे और इसे ब्रांड नेम देकर उचित माध्यम से विपणन किया जाएगा। इससे कुष्ठ अंत:वासियों के लिए भी कुछ कार्य हो सकेंगे।