मालवा मिल श्मशानघाट में सोमवार को एक चिता को 14 साल का रणजीत मुखाग्नि दे रहा था। जो चिता पर लेटे थे, वो रणजीत के पिता थे। अस्पताल में भर्ती करने के लिए पैसे नहीं थे। आक्सीजन सिलिंडर का इंतजाम हुआ नहीं, इसलिए 45 साल के अरविंद सेंगर की घर पर ही सांस उखड़ने लगी थी। सोमवार को मौत के सामने जिंदगी ने घुटने टेक दिए। अब बेटा रणजीत अनाथ हो गया। उसकी मां भारती सेंगर की सालभर पहले सड़क हादसे में मौत हो गई थी।
रणजीत के लिए पिता अरविंद ही उसके सबकुछ थे। सोमवार को जब मुक्तिधाम में अपने नन्हें हाथों से पिता की चिता के रोते हुए रणजीत फेरे ले रहा था तो देखने वालों की आंखें भर आई। अंत्येष्टि के लिए कुछ रिश्तेदार पीपीई कीट पहनकर मुक्तिधाम आए थे। अंत्येष्टि के बाद जनता कालोनी का मकान पिता के बगैर रणजीत के लिए सूना हो गया। उसे फिलहाल करीब ही रहने वाले मौसा चेतन यादव अपने साथ ले गए। वे बताते है कि रणजीत बोल नहीं पाता है। साल भर पहले मां की मौत के बाद रणजीत का उसके पिता ही ध्यान रखते थे, लेकिन अब वो सहारा भी छिन गया है। पिता अरविंद पानीपुरी का ठेला लगाते थे। जैसे-तैसे परिवार का गुजारा हो जाता था। आठ दिन पहले कोरोना संक्रमण के कारण बीमार हो गए थे। हमने उनका इलाज करवाया, लेकिन फेफड़े संक्रमित होने के कारण हालत गंभीर हो रही थी। अस्पतालों में भी भर्ती कराने की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। आक्सीजन सिलिंडर का इंतजाम भी नहीं हो सका। दो दिन से सांसे तेज चल रही थीं।
वेटिंग में शवयात्रा, दूसरी चिता की राख हटाई, तब मिली जगह
महामारी के कारण मौतों का सिलसिला बढ़ने लगा है। पंचकुइया मुक्तिधाम पर सोमवार सुबह जब एक शवयात्रा पहुंची तो अंत्येष्टि के लिए जगह ही नहीं मिली। शवयात्रा को परिसर में रख पहले जगह का इंतजाम किया गया। कर्मचारियों ने एक दिन पहले जली चिता की राख हटाई। उसके बाद स्वजनों ने चिता के लिए लकड़ियां सजाई।