13 मई 1952 … देश के लोकतांत्रिक इतिहास में यह दिन एक मील का पत्थर है। स्वतंत्र भारत का पहला संसद सत्र 13 मई, 1952 से बुलाया गया था। तीन अप्रैल, 1952 को पहली बार उच्च सदन यानी राज्यसभा का गठन किया गया और इसका पहला सत्र 13 मई, 1952 को आयोजित किया गया। इसी तरह 17 अप्रैल, 1952 को पहली लोकसभा का गठन किया गया जिसका पहला सत्र 13 मई, 1952 को आयोजित किया गया। इस दिन लोकसभा का पहला सत्र आरंभ हुआ जिसने भारत के लोकतंत्र की नींव मजबूत करने और देश के नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
भव्य संसद भवन में देशभर से चुने गए 489 सांसदों ने शपथ ग्रहण किया। इस शपथ में उन्होंने संविधान की रक्षा करने और भारत के लोगों की सेवा करने का वचन लिया। जी. वी. मावलंकर (जिन्हें ‘लोकसभा का जनक’ भी कहा जाता है) को सर्वसम्मति से पहले अध्यक्ष के रूप में चुना गया। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अपने अभिभाषण में नवगठित सरकार को शुभकामनाएं दीं और देश के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दों, जैसे कि गरीबी उन्मूलन, शिक्षा का प्रसार, और सामाजिक न्याय पर प्रकाश डाला।
इस ऐतिहासिक सत्र में कई महत्वपूर्ण बहसें हुईं, जिनमें पहली पंचवर्षीय योजना, भूमि सुधार, और सामाजिक न्याय जैसे विषय शामिल थे। सदस्यों ने विभिन्न विचारों को व्यक्त किया और देश के भविष्य के लिए रणनीति तैयार करने में योगदान दिया। लोकसभा का पहला सत्र केवल एक संसदीय सत्र नहीं था, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह स्वतंत्र भारत की जनता की इच्छाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संप्रभु संसद की स्थापना का प्रतीक था।
इस सत्र में पारित किए गए कानूनों ने भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोकसभा के पहले सत्र का वर्णन करना कठिन है क्योंकि यह घटना भारत के लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय का प्रतिनिधित्व करती है। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि 13 मई 1952 का दिन भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम दिन था, जिसने देश के भविष्य की दिशा को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।