इजराइल में कट्टरपंथी नफ्ताली बेनेट PM बने, 8 पार्टियों के गठबंधन से बनी नई सरकार; पक्ष में 60 तो विपक्ष में 59 सांसद

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इजराइल में नई सरकार का गठन हो गया है। 8 पार्टियों की गठबंधन सरकार की कमान कट्टरपंथी माने जानेवाले नफ्ताली बेनेट संभालेंगे। वे फिलीस्तीन राज्य की विचारधारा को ही स्वीकार नहीं करते। खास बात यह है कि इस गठबंधन में पहली बार कोई अरब-मुस्लिम पार्टी (राम) भी शामिल है। दूसरी तरफ, बेंजामिन नेतन्याहू के 12 साल का कार्यकाल खत्म हो गया। हालांकि, वे भी गठबंधन सरकार के ही मुखिया थे।

आंकड़ों की बात करें तो रविवार देर रात सरकार के पक्ष में 60 जबकि विरोध में 59 सांसदों ने वोट किया। गठबंधन में शामिल राम पार्टी के एमके साद अल हरूमी वोटिंग से गैरहाजिर रहे। सीधे तौर पर कहें तो गठबंधन सरकार और विपक्ष के बीच सिर्फ एक सीट का फासला है। बेनेट के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नेतन्याहू ने उन्हें हाथ मिलाकर बधाई धी।

संसद में अपने भाषण के दौरान बेनेट ने कहा- मैं बेंजामिन और सारा नेतन्याहू का शुक्रिया अदा करता हूं। इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने देश के लिए कई कुर्बानियां दी हैं। हालांकि, बेनेट के भाषण के दौरान विपक्ष नारेबाजी करता रहा।

संसद में हंगामा और नारेबाजी
The Times of Israel के मुताबिक, इजराइली संसद में रविवार को काफी हंगामा और नारेबाजी हुई। बेनेट जब भाषण देने खड़े हुए तो विपक्ष ने झूठा और अपराधी जैसे शब्दों का प्रयोग किया। हंगामा इतना ज्यादा था कि गठबंधन सरकार में शामिल और अगले प्रधानमंत्री (सितंबर 2023 के बाद) येर लैपिड भाषण ही भूल गए। नेतन्याहू ने कहा- आज यहां जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर ईरान बहुत खुश हो रहा होगा। आज हमारे देश के सामने एक साथ कई खतरे आ खड़े हुए हैं।

बेनेट की सबसे बड़ी मुश्किल
इजराइली सियासत में अस्थिरता कई साल से नजर आ रही है। दो साल में चार चुनाव हुए, लेकिन किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। बेनेट प्रधानमंत्री भले ही बन गए हों और उन्होंने गठबंधन भी बना लिया हो, लेकिन उनकी सरकार को लेकर लोग बहुत आशावान नहीं हैं। इसकी एक वजह है कि इस गठबंधन के पास बहुमत से सिर्फ एक सीट ही ज्यादा है। अगर किसी भी मुद्दे पर गठबंधन में मतभेद हुए तो नया चुनाव ही रास्ता बचेगा।

महिला सांसद ने स्ट्रेचर पर आकर वोट डाला
लेबर पार्टी की सांसद एमिली मोएती रीढ़ की हड्डी में चोट से परेशान हैं। वे हास्पिटल में एडमिट थीं। यहां से उन्हें एम्बुलेंस के जरिए संसद लाया गया। इसके बाद स्ट्रेचर पर लेटे ही उन्होंने वोट किया। मदद के लिए संसद के अधिकारी मौजूद थे। एमिली ने गठबंधन सरकार के पक्ष में वोट किया। एमिली की चोट गंभीर है और वो खड़े होने की स्थिती में नहीं थीं।

नेतन्याहू अब भी ताकतवर
12 साल तक सत्ता सुख भोगने वाले नेतन्याहू के लिए सत्ता के दरवाजे अब भी खुले हैं। इसकी वजह यह है कि नई सरकार मेजॉरिटी के लिहाज से बिल्कुल बाउंड्री लाइन पर खड़ी है। अगर किसी वजह से यह गिर जाती है तो दो रास्ते होंगे। पहला- नए चुनाव कराए जाएं। दूसरा- नेतन्याहू बहुमत का फिर जुगाड़ करें और सरकार बना लें।

दोनों ही हालात में उन्हें फायदा है। अगर नए चुनाव होंगे तो वे मतदाताओं के सामने यह तर्क रखेंगे कि विपक्ष स्थिर सरकार देने में नाकाम रहा है। दूसरा- किसी तरह सरकार बनाकर उसे साल-दो साल के लिए चला लिया जाए। लिकुड पार्टी के पास कई नेता हैं, लेकिन नेतन्याहू जैसा ताकतवर नहीं।

गठबंधन में बारी-बारी से दो प्रधानमंत्री होंगे
यामिना पार्टी के बेनेट सितंबर 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे। इसके बाद वे यह पद येर लैपिड को सौंप देंगे। यह गठबंधन की शर्तों में शामिल है। नेतन्याहू इसे सत्ता के लिए सौदेबाजी बता रहे हैं। लेकिन, उनके खिलाफ भी भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं। हालांकि, वे खुलेआम आरोप लगा रहे हैं कि यह कोएलिशन सरकार चंद महीने भी नहीं टिक पाएगी।

सरकार क्यों बदली
दो साल में चार चुनावों के बाद भी किसी पार्टी को अकेले के दम पर स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। संसद में कुल 120 सीटें हैं। बहुमत के लिए 61 सांसद चाहिए। लेकिन, मल्टी पार्टी सिस्टम है और छोटी पार्टियां भी कुछ सीटें जीत जाती हैं। इसी वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत पाना आसान नहीं होता। नेतन्याहू के साथ भी यही हुआ।

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