देश की जनता लंबे समय से महंगाई से जूझ रही है। खासकर खाने के तेल की कीमतें कोरोनाकाल में आसमान चढ़ चुकी हैं। 70 रुपये प्रति लीटर की दर से बिकने वाला तेल अब 150 से 200 रुपये के बीच बिक रहा है। इस बीच सरकार ने खाने का तेल सस्ता करने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी कम की है। पहले सोयाबीन के तेल पर 15 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगती थी, जिसे घटाकर 8.25 फीसदी कर दिया गया है। इससे पहले भी सरकार ने क्रूड पाम ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी कम की थी। कुल मिलाकर सरकार अब तक टैक्स में 8.25 फीसदी कटौती कर चुकी है।
एग्री सेस और सोशल वेलफेयर सेस को मिलाकर अब सोया तेल में कुल ड्यूटी 38.50 परसेंट से घटकर 30.25 परसेंट पर आ चुकी है।
क्या होगा असर
इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती से तेल की कीमतों में सीधे कमी आएगी। क्योंकि सरकार हर वस्तु पर जो भी टैक्स लगाती है वो सीधे ग्राहकों से लिया जाता है। इस वजह से सरकार के टैक्स कम करने से तेल की कीमतें कम होंगी। हालांकि सरकार ने फिलहाल 30 सितंबर तक ही तेल की इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती है। सरकार का मानना है कि देश के किसान तिलहन फसलों का उत्पादगन बढ़ाकर तेल की कीमतें कम कर सकते हैं। हालांकि किसानों ने सरकार की बात किस हद तक सुनी है, ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।
हर साल 1.5 टन खाने के तेल का आयात करता है भारत
भारत में हर साल 1.5 टन खाने के तेल का आयात किया जाता है। इसके लिए करीब 70,000 करोड़ रुपये का खर्च होते हैं। हमारे देश में हर साल कुल 2.5 करोड़ टन खाने का तेल खपत होता है। भारत में मलेशिया और इंडोनीशिया से पाम ऑयल का आयात किया जाता है। पिछले साल 72 लाख टन पाम ऑयल मलेशिया और इंडोनेशिया से मंगवाया गया था। इसके अलावा 34 लाख टन सोया तेल ब्राजील और अर्जेंटीना से मंगाया गया था, जबकि 25 लाख टन सनफ्लावर ऑयल रूस और यूक्रेन से आया था।
पाम ऑयल मिशन से आत्मनिर्भर बनेगा भारत
मोदी सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में पाम ऑयल मिशन योजना को मंजूरी दी। भारत सरकार ने खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए 11,040 करोड़ रुपए के पाम ऑयल मिशन का ऐलान किया। इस बजट से भारत को खाद्य तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम किए जाएंगे। इससे हमारे देश में सालाना आयात होने वाले 1.5 टन खाने के तेल का उत्पादन देश में होगा, जो कि किसानों की आय बढ़ाएगा और तेल इंडस्ट्री को भी इससे फायदा होगा।
किसानों को नहीं होगा नुकसान
कैबिनेट बैठक में ये भी तय हुआ है कि अगर फसल का उत्पादन ज्यादा होने से उसकी कीमत कम होती है और किसानों को घाटा होता है तो सरकार DBT के माध्यम से किसानों के खाते में पैसा भेज देगी और उनका नुकसान नहीं होने देगी। इसके साथ ही सरकार ने खेती की सामग्री खरीदने के लिए दी जाने वाली राशि की मात्रा में बढ़ोत्तरी की है। वहीं पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों को इंडस्ट्री लगाने में मदद करने के लिए सरकार ने 5 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद करने का फैसला लिया है।