इजरायल के ईरान पर जवाबी हमले के बाद पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर पहुंच गया है। इससे पहले ईरान ने इजरायल पर मिसाइल और रॉकेटों से हमला बोला था। दोनों देशों के बीच अब संघर्ष बढ़ता दिख रहा है। इजरायल के ईरान पर जवाबी हमले के बाद ये बहस भी छिड़ गई है कि क्या दोनों देश एक हवाई युद्ध में उलझने जा रहे हैं। 13 अप्रैल के ईरान के इजरायल पर हमले ने उसके एयर डिफेंस सिस्टम पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया है। ईरान अपनी पुरानी वायु रक्षा प्रणालियों के साथ बचाव करेगा तो इजरायल को अमेरिका जैसे सहयोगियों से बड़ी मदद मिल सकती है।
दोनों देश मिसाइल और रॉकेट से एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं। ऐसे में दोनों देशों की वायु सेनाओं और हवाई रक्षा प्रणालियों की ताकत पर टाइम्स ऑफ इजरायल ने रिपोर्ट की है। रिपोर्ट में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज इन लंदन (आईआईएसएस) के हवाले से कहा गया है कि ईरान की मुश्किल ये है कि दशकों के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने सेना को नई उच्च तकनीक वाले सैन्य उपकरणों से काफी हद तक दूर कर दिया है। ईरानी एयरफोर्स के पास केवल कुछ दर्जन स्ट्राइक जेट हैं, जिनमें 1979 में ईरानी क्रांति से पहले हासिल किए गए रूसी जेट और पुराने अमेरिकी मॉडल शामिल हैं। आईआईएसएस के मुताबिक, तेहरान के पास नौ एफ-4 और एफ-5 लड़ाकू विमानों का एक स्क्वाड्रन, रूसी निर्मित सुखोई-24 जेट का एक स्क्वाड्रन और कुछ मिग-29, एफ7 और एफ14 विमान हैं।
ईरान के पास है मिसाइलों का जखीरा
रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानियों के पास लक्ष्य पर उड़ान भरने और विस्फोट करने के लिए डिजाइन किए गए पायलट रहित विमान हैं। विश्लेषकों का मानना है कि ईरान के ड्रोन शस्त्रागार की संख्या हजारों में है। ईरान के पास सतह से सतह पर मार करने वाली 3,500 से अधिक मिसाइलें हैं, जिनमें से कुछ आधे टन के हथियार ले जा सकती हैं। हालांकि इनमें ऐसी मिसाइलें कम ही हैं, जो इजरायल तक पहुंचने में सक्षम होंगी। ईरान ने सुखोई-24 को किसी भी संभावित इजरायली हमले का मुकाबला करने के लिए तैयारी कहा है लेकिन 1960 के दशक में बने सुखोई-24 जेट विमानों पर ईरान की निर्भरता, उसकी वायु सेना की सापेक्ष कमजोरी को दर्शाती है। अपने बचाव के लिए ईरान रूसी और घरेलू स्तर पर निर्मित सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल और वायु रक्षा प्रणालियों के मिश्रण पर निर्भर है।