ई तो गजबै कर दिया भैया…कैसे एक सर्वर ने पूरी दुनिया के विमानों को जमीन सूंघा दी, समझिए

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मार्च 1948 की बात है, उस वक्त पाकिस्तान का नया-नया गठन हुआ ही था। तब पाकिस्तान के फाउंडर और कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना एक दौरे पर ढाका पहुंचे थे। पाकिस्तान की राजकीय भाषा के सवाल पर उन्होंने एक सभा में वहां साफ तौर पर कहा- मैं यह बता देना चाहता हूं कि पाकिस्तान की राजकीय भाषा केवल उर्दू होगी। अगर आपको कोई गुमराह करता है, तो वो पाकिस्तान का दुश्मन है। जहां तक राजकीय भाषा का सवाल है, वो उर्दू ही है। इससे एक महीने पहले फरवरी, 1948 में जब पाकिस्तान असेंबली में एक बंगाली मेंबर ने असेंबली में उर्दू के साथ-साथ बांग्ला के इस्तेमाल से संबंधित प्रस्ताव पेश किया तो इस पर जमकर विरोध हुआ। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे लियाकत अली खान ने कहा कि पाकिस्तान उपमहाद्वीप के करोड़ों मुसलमानों की मांग पर बना है और मुसलमानों की भाषा उर्दू है। ऐसे में ये अहम है कि पाकिस्तान की एक कॉमन भाषा हो, जो केवल उर्दू ही हो सकती है। जिन्ना और लियाकत की इसी एक गलती ने बांग्लादेश को जन्म दिया, जो आज आरक्षण की आग में फिर से झुलस रहा है। हिंसक प्रदर्शनों में अब तक करीब 105 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 3000 से ज्यादा घायल बताए जा रहे हैं। देश में इंटरनेट सेवा ठप कर दी गई है। बस-ट्रेन और मेट्रो सेवाएं भी बंद हैं। हालात काबू में करने के लिए सड़कों पर सेना मार्च कर रही है।

फेफड़ों की बीमारी की वजह से जिन्ना की मौत, न होता बंटवारा

दक्षिण एशिया के इतिहास के जानकार और लेखक नीलेश बोस की किताब ‘रीकास्टिंग द रीजन’ में कहा गया है कि कुछ बंगाली जिन्ना के साथ जनवरी 1948 से बांग्ला भाषा की स्थिति पर बात कर रहे थे, लेकिन जिन्ना ने उनकी बात अनसुनी कर दी। 11 सितंबर, 1948 में जिन्ना की फेफड़ों की बीमारी की वजह से मौत हो गई। चर्चित इतिहासकारों लैरी कॉलिंस और डॉमिनिक लैपियर ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में लिखा है कि जिन्ना अरसे से फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे थे। वह लंबा भाषण देने के बाद घंटों हांफते रहते थे। मगर, उनका इलाज करने वाले तत्कालीन बॉम्बे के डॉक्टर आर पटेल ने उनकी रिपोर्ट अपनी आलमारी में छिपाकर रख दी थी। अगर, ये रिपोर्ट पहले ही पता चल जाती तो शायद भारत का बंटवारा नहीं होता। तब शायद बांग्लादेश आज आरक्षण की आग में भी नहीं झुलस रहा होता।

बांग्लादेशी मुस्लिमों को पाकिस्तान में नजरअंदाज किया गया

एक डच प्रोफेसर विलियम वॉन शिंडल ने अपनी किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ बांग्लादेश’ में लिखा कि पाकिस्तान के वजूद में आने के तुरंत बाद ‘उत्तर भारत’ के लोगों का वर्चस्व उभरकर सामने आया। बांग्लादेशी मुसलमानों को उम्मीद थी कि वो बहुसंख्यक आबादी होने के कारण पाकिस्तान में अहम भूमिका निभाएंगे, लेकिन ‘उत्तर भारत’ के मुस्लिम नेताओं ने देश की कमान अपने हाथ में ले ली थी और उन्हें दरकिनार कर दिया गया।

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