उत्तराखंड के चमोली में रविवार (7 फरवरी) को एक बड़ी आपदा आई। हालांकि इस बार की घटना पहले के मुकाबले काफी छोटी है। वैज्ञानिक की भाषा में इसे ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लट कहते है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब ग्लेशियर टूटकर एक विनाशकारी बाढ़ बन जाता है। तब पानी में ग्लेशियर की बर्फ की मात्रा काफी ज्यादा होती है जो पानी के साथ बहती है।
इस तरह की घटना से झील का निर्माण भी हो सकता है। जिसको मार्जिनल या सबमार्जिनल लेक कहा जाता है। उत्तराखंड में 2013 में आई आपदा के कारण इसी तरह एक झील बनी थी। सब मार्जिनल लेक की घटना के चलते वैज्ञानिक उसे जोकुलोप (Jokulhlaup) कहते हैं। इसमें पानी में बहा कर लाया गया मलबा ज्यादा होता है। पानी में बने दबाव के कारण पत्थर, चट्टान और बर्फ के बड़े टुकड़े बह जाते हैं। इस तरह की घटना में हल्का भूकंप भी होता है।जोकुलोफ एक आइसलैंडिक शब्द है और अंग्रेजी भाषा से लिया गया। इसकी शुरुआत वातनाजोकुल (Vatnajokull) आइसलैंज से हुई थी। हालांकि बाद में इसे हर सब ग्लेशियर बर्स्ट कहा जाने लगा। ग्लेशियर लेक में पानी का स्तर हजारों क्यूबिक मीटर से लेकर लाखों क्यूबिक मीटर हो सकता है। टूटने पर 15 हजार क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से पानी बह सकता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने कुछ ग्लेशियर्स को काफी खतरनाक माना है।