उम्मीद की किरण…

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(उमेश बागरेचा)

जिले में नवपदस्थ कलेक्टर डॉ. गिरीश मिश्रा की बीते एक सप्ताह की गतिविधियों से जिले की अवाम को उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है। डॉ. मिश्रा लगातार शहरी एवं ग्रामीण अंचलों का दौरा कर अपने अधीनस्थ विभिन्न विभागों का आकस्मिक निरीक्षण कर रहे है। इस दौरान उन्हें जहाँ भी  कर्तव्यों के प्रति अधिकारी-कर्मचारियों की लापरवाही नजर आई उन्होंने तुरंत इन लापरवाह कर्मचारियों को उनकी गलती अनुसार आवश्यक दंड  देने में परहेज नहीं किया, कुछ को निलंबित तो कुछ को कारण बताओ नोटिस दिया। निश्चय ही उनकी इस कार्यवाही से जिले के प्रशासनिक अमले में कसावट आयेगी तथा व्यवस्थाओं में सुधार होगा। लेकिन देखना होगा कि उनकी इस कार्यवाही को जिले के जवाबदेह जनप्रतिनिधियों से कितना समर्थन मिल पाता है। क्योंकि प्राय: जब कोई कार्यवाही होती है तो प्रभावित कर्मचारी अपने आकाओं के पास पहुंचकर दबाव भी बनाते है तब सारी कार्यवाही धरी की धरी रह जाती है। चूंकि पदस्थ अधिकांश कर्मचारी स्थानीय होते है और उनका स्थानीय माननीयों से सीधा संपर्क होता है ऐसे मे कई बार चाहकर भी व्यवस्थाओं में सुधार करना मुश्किल होता है। हमने देखा है कि जब बी. चंद्रशेखर बालाघाट कलेक्टर के रूप में पदस्थ थे उनकी कार्यप्रणाली माननीयों को रास नहीं आई थी, क्योंकि समस्याओं को लेकर आम जनता की भीड़ कलेक्टर के दरबार में दिख रही थी, माननीयों के दरबार सूने हो गए थे। भला इस स्थिति को माननीय कैसे बर्दाश्त कर सकते थे, नतीजतन बी चंद्रशेखर का समय से पहले स्थानांतरण हो गया। उस वक्त आमजन में इसकी ना केवल तीखी प्रतिक्रिया हुई थी बल्कि 1 दिन का सफल बालाघाट बंद भी हुआ था। यदि 3 वर्षों का पूरा कार्यकाल इस जिले में बिताना हो तो निवर्तमान कलेक्टर श्री आर्य से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उन्होंने माननीयों ( सिर्फ सत्तापक्ष के ) की वंदना में कमी नहीं की। उन्हे जनता जनार्दन से कोई लेना देना नही था। उन्होंने शायद ही कभी जिले के अपने अधीनस्थ विभागों का निरीक्षण किया होगा। पूरे कार्यकाल के दौरान अधिकांश समय वे कथित तिकड़ी सहित ही घूमते पाए गए। लोगों में चर्चा रही की कलेक्ट्री  के प्रशासनिक कार्यों में खाकी का पूरे समय क्या काम? खाकी की उपस्थिति बड़ी हास्यास्पद होती थी संबंधितों से रूबरू सिर्फ श्री आर्य होते थे। खाकी बाबू एक अंगरक्षक की तरह उनसे 1 मीटर पीछे खड़े होकर मोबाइल में व्यस्त रहते थे। ऐसा लगता था कि खाकी के पास उनके स्वयं के विभाग की कोई जिम्मेदारी ना होकर  शासन ने इन्हे भी राजस्व विभाग की पूर्णकालिक सेवा में लगा दिया है। यदि श्री आर्य ने अपने कार्यकाल के दौरान अधीनस्थ विभागों की सार संभाल ले ली होती तो नवपदस्थ कलेक्टर डॉ. मिश्रा को अपनी पदस्थापना के मात्र एक हफ्ते के दौरान दर्जन भर कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही ना करनी पड़ती। लेकिन सरकारी विभागो की बेलगाम नौकरशाही इतने भर से दुरुस्त नहीं हो जाने वाली? अभी डॉ. मिश्रा को बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे। शासन की गरीबों के लिए चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए पात्र व्यक्तियों को भ्रष्ट तंत्र के साथ कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है इन बातों को संज्ञान में लेना होगा। अन्यथा क्या? लोगों का काम है कहना। कहते रहेंगे कि नये-नये में थोड़ा रूवाब तो दिखाना ही पड़ता है।
बालाघाट जिले के 07 लाख लोगों के बने आयुष्मान कार्ड
बालाघाट (पद्मेश न्यूज)।   उल्लेखनीय है कि बालाघाट जिले में 13 लाख लागों के आयुष्मान कार्ड बनाने का लक्ष्य दिया गया है। इस लक्ष्य के विरूद्ध अब तक जिले में 07 लाख से अधिक लोगों के आयुष्मान कार्ड बनाये जा चुके है। कलेक्टर डॉ गिरीश कुमार मिश्रा ने सभी पात्र लोगों के आयुष्मान कार्ड बनाने का कार्य शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश दिये है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मनोज पांडेय ने बताया कि ग्राम पंचायतों को ग्राम रोजगार सहायकों को भी आयुष्मान कार्ड बनाने का काम दिया गया है और उन्हें प्रति कार्ड एक निश्चित राशि का भुगतान भी किया जा रहा है। 
(उमेश बागरेचा)
जिले में नवपदस्थ कलेक्टर डॉ. गिरीश मिश्रा की बीते एक सप्ताह की गतिविधियों से जिले की अवाम को उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है। डॉ. मिश्रा लगातार शहरी एवं ग्रामीण अंचलों का दौरा कर अपने अधीनस्थ विभिन्न विभागों का आकस्मिक निरीक्षण कर रहे है। इस दौरान उन्हें जहाँ भी  कर्तव्यों के प्रति अधिकारी-कर्मचारियों की लापरवाही नजर आई उन्होंने तुरंत इन लापरवाह कर्मचारियों को उनकी गलती अनुसार आवश्यक दंड  देने में परहेज नहीं किया, कुछ को निलंबित तो कुछ को कारण बताओ नोटिस दिया। निश्चय ही उनकी इस कार्यवाही से जिले के प्रशासनिक अमले में कसावट आयेगी तथा व्यवस्थाओं में सुधार होगा। लेकिन देखना होगा कि उनकी इस कार्यवाही को जिले के जवाबदेह जनप्रतिनिधियों से कितना समर्थन मिल पाता है। क्योंकि प्राय: जब कोई कार्यवाही होती है तो प्रभावित कर्मचारी अपने आकाओं के पास पहुंचकर दबाव भी बनाते है तब सारी कार्यवाही धरी की धरी रह जाती है। चूंकि पदस्थ अधिकांश कर्मचारी स्थानीय होते है और उनका स्थानीय माननीयों से सीधा संपर्क होता है ऐसे मे कई बार चाहकर भी व्यवस्थाओं में सुधार करना मुश्किल होता है। हमने देखा है कि जब बी. चंद्रशेखर बालाघाट कलेक्टर के रूप में पदस्थ थे उनकी कार्यप्रणाली माननीयों को रास नहीं आई थी, क्योंकि समस्याओं को लेकर आम जनता की भीड़ कलेक्टर के दरबार में दिख रही थी, माननीयों के दरबार सूने हो गए थे। भला इस स्थिति को माननीय कैसे बर्दाश्त कर सकते थे, नतीजतन बी चंद्रशेखर का समय से पहले स्थानांतरण हो गया। उस वक्त आमजन में इसकी ना केवल तीखी प्रतिक्रिया हुई थी बल्कि 1 दिन का सफल बालाघाट बंद भी हुआ था। यदि 3 वर्षों का पूरा कार्यकाल इस जिले में बिताना हो तो निवर्तमान कलेक्टर श्री आर्य से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उन्होंने माननीयों ( सिर्फ सत्तापक्ष के ) की वंदना में कमी नहीं की। उन्हे जनता जनार्दन से कोई लेना देना नही था। उन्होंने शायद ही कभी जिले के अपने अधीनस्थ विभागों का निरीक्षण किया होगा। पूरे कार्यकाल के दौरान अधिकांश समय वे कथित तिकड़ी सहित ही घूमते पाए गए। लोगों में चर्चा रही की कलेक्ट्री  के प्रशासनिक कार्यों में खाकी का पूरे समय क्या काम? खाकी की उपस्थिति बड़ी हास्यास्पद होती थी संबंधितों से रूबरू सिर्फ श्री आर्य होते थे। खाकी बाबू एक अंगरक्षक की तरह उनसे 1 मीटर पीछे खड़े होकर मोबाइल में व्यस्त रहते थे। ऐसा लगता था कि खाकी के पास उनके स्वयं के विभाग की कोई जिम्मेदारी ना होकर  शासन ने इन्हे भी राजस्व विभाग की पूर्णकालिक सेवा में लगा दिया है। यदि श्री आर्य ने अपने कार्यकाल के दौरान अधीनस्थ विभागों की सार संभाल ले ली होती तो नवपदस्थ कलेक्टर डॉ. मिश्रा को अपनी पदस्थापना के मात्र एक हफ्ते के दौरान दर्जन भर कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही ना करनी पड़ती। लेकिन सरकारी विभागो की बेलगाम नौकरशाही इतने भर से दुरुस्त नहीं हो जाने वाली? अभी डॉ. मिश्रा को बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे। शासन की गरीबों के लिए चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए पात्र व्यक्तियों को भ्रष्ट तंत्र के साथ कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है इन बातों को संज्ञान में लेना होगा। अन्यथा क्या? लोगों का काम है कहना। कहते रहेंगे कि नये-नये में थोड़ा रूवाब तो दिखाना ही पड़ता है।
बालाघाट जिले के 07 लाख लोगों के बने आयुष्मान कार्ड
बालाघाट (पद्मेश न्यूज)।   उल्लेखनीय है कि बालाघाट जिले में 13 लाख लागों के आयुष्मान कार्ड बनाने का लक्ष्य दिया गया है। इस लक्ष्य के विरूद्ध अब तक जिले में 07 लाख से अधिक लोगों के आयुष्मान कार्ड बनाये जा चुके है। कलेक्टर डॉ गिरीश कुमार मिश्रा ने सभी पात्र लोगों के आयुष्मान कार्ड बनाने का कार्य शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश दिये है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मनोज पांडेय ने बताया कि ग्राम पंचायतों को ग्राम रोजगार सहायकों को भी आयुष्मान कार्ड बनाने का काम दिया गया है और उन्हें प्रति कार्ड एक निश्चित राशि का भुगतान भी किया जा रहा है।

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