इंश्योरेंस कंपनियां मोटर एक्सीडेंट क्लेम केस में मिलने वाले मुआवजा के ब्याज पर टैक्स नहीं लगा सकेंगी। गुजरात हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बीमा कंपनियों की ओर से पीड़ित को मिलने वाली मुआवजा राशि के ब्याज पर किसी तरह का टैक्स नहीं लगेगा। यह किसी तरह की इनकम का हिस्सा नहीं है, बल्कि पीड़ित को मिलने वाली एक सहायता राशि है।
यह मामला इसकारण महत्वपूर्ण है, क्योंकि मोटर दुर्घटना के केस कोर्ट में दशकों तक चलते हैं। ज्यादातर मामलों में पीड़ितों को मिलने वाली ब्याज राशि मुआवजे के लिए दी गई मूल राशि से भी ज्यादा होती है। आदेश के साथ बीमा कंपनियां पीड़ितों को भुगतान करते समय टीडीएस नहीं काट सकेगी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस निशा ठाकोर की दो जजों की बेंच ने आदेश दिया है कि क्लेम के मामले में पीड़ित को पूरी रकम मिलना चाहिए। मामले में राजस्व और कुछ पीड़ितों की ओर से याचिका लगी थी। इसके बाद बीमा कंपनियों ने भी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। क्योंकि अगर क्लेम का भुगतान करते समय टीडीएस काटा जाता है, तब पीड़ित आपत्ति उठाते हैं और यदि नहीं किया जाता है, तब आयकर विभाग मामले में आपत्ति उठाता है।
इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीडितों को ये मुआवजा हादसे में परिजन की मौत या घायल होने पर मिलता है। यह किसी तरह की कमाई या लाभ नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह ब्याज आयकर अधिनियम के तहत कर योग्य नहीं है, क्योंकि यह आय नहीं है। कोर्ट ने कहा, रकम पर टैक्स कटौती का सवाल तभी उठेगा, जब भुगतान प्राप्तकर्ता की आय की प्रकृति का हो। बीमा कंपनी के वकील के मुताबिक, हाईकोर्ट के आदेश से पीड़ितों और उनके परिजनों को मदद मिलेगी, क्योंकि उनमें से ज्यादातर समाज के गरीब तबके से हैं और उन्हें टैक्स कटौती के साथ पैसा मिलने के बाद प्रक्रिया का पालन करने के लिए बहुत कम जानकारी है। इससे बीमा कंपनियों को भी जटिल गणनाओं और लंबी प्रक्रिया से आराम मिलेगा।