मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरी में ओबीसी आरक्षण के मामले की सुनवाई 18 अप्रैल से 24 अप्रैल के बीच नियमित रूप से चल रही थी। इसी बीच सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख अख्तियार कर लिया है। जिसके कारण ओबीसी आरक्षण को लेकर एक बार फिर मामला लटकता हुआ दिख रहा है।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के आवेदन पर 28 अप्रैल को सुनवाई हो सकती है। न्यायमूर्ति शील नागू और जस्टिस डीडी बंसल की खंडपीठ आरक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही है। इसी बीच सरकार का सुप्रीम कोर्ट मे रुख करने से एक बार फिर ओबीसी आरक्षण को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है।
मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने के पीछे,50 फ़ीसदी से ज्यादा आरक्षण दिए जाने पर स्पष्टता की मांग है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जिन राज्यों में 50 फ़ीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है। उसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होने की अधिकारिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जो सुनवाई चल रही है। उसे एक तरह से चुनौती दी है।
इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के निर्णय के पैरा नंबर 810 में यह व्यवस्था है, कि यदि आरक्षण की सीमा किसी राज्य में 50 फीसदी से ऊपर बढ़ाई जाती है। उसकी न्यायिक समीक्षा का अधिकार सुप्रीम कोर्ट का होगा। ऐसा फैसले में उल्लेख है।
सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण के मुद्दे को लेकर 4 याचिकाएं पहले से ही लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फैसले को आधार बनाकर मध्य प्रदेश सरकार, हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं कराकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कराना चाहती है। इससे सरकार को मामला लंबित रखने में मदद मिलेगी।
नवंबर माह में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव होना है। आरक्षण के इस मुद्दे को सरकार पिंजरे में बंद रखना चाहती है। हाईकोर्ट में अभी तक जो सुनवाई चल रही थी। उससे सरकार को ऐसा महसूस हुआ होगा,कि ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट का रुख सरकार के विपरीत जा सकता है। अतः मध्य प्रदेश सरकार ने आरक्षण के मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो, ओबीसी आरक्षण को लंबित करने की रणनीति अपनाई है। ताकि चुनाव में इसका कोई विपरीत असर ना पड़े।