- कांग्रेस- सोनिया गांधी को 2022 तक कमान संभव
- भाजपा- टीएमसी के कुछ नेता वापसी की जुगत में
कांग्रेस में सोनिया गांधी 2022 तक अध्यक्ष बनी रहेंगी। क्योंकि, चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजों पर कांग्रेस में भीतरी राजनीति किस दिशा में जाएगी, यह टिका था। पर परिणाम गांधी परिवार की उम्मीदों के अनुरूप नहीं आए।
सूत्रों के अनुसार पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के लिए इस साल मई-जून तक राजस्थान या दिल्ली में अधिवेशन होना था, अब इसकी संभावना नहीं दिखती। इसलिए संभव है सोनिया ही अध्यक्ष रहें। वहीं, एक दिन पहले हुई कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी की ही आवाज सुनाई दी।
वर्चुअल प्लेटफाॅर्म पर हुई इस बैठक में राहुल पर्दे तक पर नहीं दिखे। संभव है इस माह 17 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की एक और बैठक हो। इसके लिए सांसदों को भेजी सूचना में कहा गया है कि विधानसभा चुनाव नतीजों के अलावा भविष्य की रणनीति पर चर्चा होगी।
सूत्रों का कहना है कि गांधी परिवार ने कोरोना को राजनीतिक हथियार बनाने का फैसला किया है। इसी रणनीति के तहत शुक्रवार को सोनिया ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक बुलाई थी और मोदी सरकार पर निशाना साधा। यह दांव भाजपा के अलावा पार्टी के असंतुष्ट धड़े पर भी था।
दरअसल, चुनाव नतीजों में कांग्रेस की फजीहत और देश में कोरोना के हालात पर जी-23 नेता मौन हैं। कोरोना पर भी यह नेता खामोश हैं। दूसरी ओर, राहुल गांधी खेमे को उम्मीद थी असम और केरल से बूस्टर डोज मिलेगी, लेकिन केरल में वाममोर्चे की फिर सरकार बन गई। वहीं, असम में भी भाजपा ने मजबूती से सत्ता कायम कर ली। ऐसे में अब कोरोना महामारी ही पार्टी की भीतरी-बाहरी रणनीति का प्रमुख अस्त्र है।
असम में 29% वोट, पर सीटें 29 जी-23 के साथ वर्तमान नेतृत्व व्यवस्था जारी रखने पर सहमत
पार्टी में चर्चा है नेतृत्व ठीक चुनावी प्रबंधन नहीं कर सका। असम में 29% वोट लेकर कांग्रेस 29 सीटें, जबकि भाजपा इससे 4% अधिक वोट लेकर 60 सीटें जीती। पुड्डुचेरी में कांग्रेस 15% वोटों के साथ 2 सीटें, जबकि भाजपा 13% वोट लेकर 6 सीटें जीती। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राहुल की बजाय सोनिया ही नेतृत्व करती हैं, तो उन्हें कोई एतराज नहीं। खबर है कि जी-23 के साथ यह व्यवस्था जारी रखने पर सहमति बन गई है।
भाजपा के कुछ नवनिर्वाचित विधायक और दो-तीन सांसद हैं रडार पर
बंगाल में परिणाम अनुकूल न आने से भाजपा में घमासान जारी है, क्योंकि तृणमूल से भाजपा में आए कुछ नवनिर्वाचित विधायक और दो-तीन सांसद घर-वापसी कर सकते हैं। इससे भाजपा और आरएसएस में अंदरखाने हलचल है। संघ चुनाव नतीजों पर मंथन के साथ तृणमूल से आए नेताओं पर भी निगाह रख रहा है। मुकुल रॉय की तृणमूल में वापसी की भी बात चली। हालांकि, इस पर उन्होंने सफाई दी कि बतौर भाजपा कार्यकर्ता काम करते रहेंगे।
आरएसएस बंगाल इकाई के एक सक्रिय पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, भाजपा के टिकट पर जीते कुछ विधायक पाला बदल सकते हैं। भाजपा के दो-तीन सांसद भी ऐसे हैं जो तृणमूल के संपर्क में हैं, संघ की इन पर भी नजर है। हालांकि, संघ उम्मीद के मुताबिक सीटें न मिलने के बावजूद बंगाल में पार्टी के प्रदर्शन से संतुष्ट है।
दिलीप घोष संघ से ही भाजपा में गए हैं। घोष के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बंगाल में पार्टी मजबूत हुई। स्थानीय नेताओं के अनुसार संघ को हिंदुत्व को बंगाल में धार देने वाले समर्पित नेताओं पर ही भरोसा है। वहीं, बंगाल भाजपा के वरिष्ठ नेता और मेघालय तथा त्रिपुरा के पूर्व गवर्नर तथागत रॉय बंगाल भाजपा में हुए टिकट बंटवारे को लेकर अपनी नाराजगी खुले में जता चुके हैं।
प्रदेश प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष सहित अन्य नेताओं को हार का जिम्मेदार ठहराने पर पार्टी हाईकमान उन्हें दिल्ली तलब भी कर चुका है। लेकिन, बंगाल के भाजपा नेताओं के अनुसार तथागत राॅय जनाधार वाले नेता नहीं हैं। नेतृत्व पर उनके सवाल उठाने से पार्टी को फर्क नहीं पड़ेगा।
सीएम प्रोजेक्ट किए जाने वाले थे- तथागत पाला बदलते हैं तो बतौर इनाम राज्यसभा भेजे जा सकते हैं
भाजपा में पहले तथागत को सीएम प्रोजेक्ट करने पर चर्चा हुई थी, पर न टिकट मिला और न उनसे प्रचार करवाया गया। टीएमसी सांसद सौगत राॅय उनके छोटे भाई हैं। टीएमसी मोदी-शाह के खिलाफ मुखर उन्हीं की पार्टी के नेताओं को संसद भेजना चाहती है। ममता बनर्जी यशवंत सिन्हा को भी राज्यसभा भेज सकती हैं। ऐसे में तथागत पाला बदलते हैं तो उन्हें भी इनाम मिल सकता है। टिकट बंटवारे से कुछ और पुराने भाजपाई भी नाराज हैं।