काशी के वैभव से अभिभूत महाकाल की नगरी ने कहा- ‘अगला चुनाव उज्जैन से लड़ें नरेन्‍द्र मोदी’

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 काल ने करवट ली और वह काशी विश्वनाथ धाम पुन: अपने वैभव में लौट आया, जिसे कभी आक्रांताओं ने रक्तपात से मलिन कर दिया था। रक्त के वे दाग मां गंगा के पानी से धोए जा चुके। किंतु काशी वे दाग इसलिए धो सकी क्योंकि समय ने उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसा निर्णायक, कर्मठ, दूरदर्शी और धर्मालु सांसद दिया।

काशी के इस बदले स्वरूप को देख देश की एक अन्य प्राचीन नगरी उज्जैन भी लालायित है कि उसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सांसद के रूप में मिलें और यहां का वैभव भी और मुखरित हो। इसी सोच के साथ अब उज्जैन के कंठ से यह स्वर उठने लगा है कि नरेन्द्र मोदी अगला लोकसभा चुनाव उज्जैन संसदीय क्षेत्र से लड़ें। इसके लिए उज्जैन का संत समाज, महामंडलेश्वर, गुरुकुलों के आचार्य व प्रबुद्ध नागरिक प्रधानमंत्री को ‘आमंत्रण पाती भेजेंगे। इसमें आह्वान होगा कि ‘महाकाल आपको बुला रहे हैं। उज्जैन पधारिए।

उज्जैन का मनोरथ है कि ‘नमो यहां आएं

आवाहन अखाड़ा के महामंडलेश्वर व अखंड हिंदू सेना के संरक्षक स्वामी अतुलेशानंद जी महाराज कहते हैं- ‘महान भारतभूमि को नरेन्द्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री पुण्य के प्रतिफल के रूप में मिले हैं। महाकाल की नगरी उज्जयिनी का मनोरथ है कि वे अगला चुनाव यहां से लड़ें। उज्जैन की धरती मंगल मन से उनका आह्वान करती है।

इसी तरह वाल्मीकि धाम उज्जैन के संस्थापक बालयोगी संत उमेशनाथ जी महाराज कहते हैं- ‘मोदी जी केवल काशी या उज्जैन के नहीं अपितु समूची भारत भूमि के हैं। वे इस महान भूमि के कल्याण के निमित्त हैं। वे काशी से सांसद बनें या उज्जैन से, भारत उनके नेतृत्व में वैभवशाली बनता रहेगा। वे उज्जैन का प्रतिनिधित्व करें तो यह गौरव की बात होगी।

धर्मभूमि पर मोदी जी का स्वागत है

उज्जैन में शि‍प्रा तट स्थित रामघाट के समीप बने प्राचीन गुरुकुल रामानुजकोट के माधव प्रपन्नाचार्य महाराज कहते हैं- ‘धर्मभूमि पर यशस्वी नरेन्द्र मोदी जी का स्वागत है। वे उज्जैन या भारत में कहीं से भी सांसद चुने जाएं, उनके हाथों भारत का कल्याण होगा। यदि उज्जैन से चुनाव लड़ते हैं तो यह नगरी उनके ललाट पर विजय तिलक करेगी।

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दोनों नगरों में ये समानताएं

– दोनों देश की सबसे प्राचीन धार्मिक नगरी हैं।

– दोनों नगरी में ज्योतिर्लिंग स्थित हैं।

– सप्तपुरियों में दोनों पुरी की गणना होती है।

– दोनों में पवित्र नदियां गंगा व शिप्रा बहती हैं।

– आक्रांताओं के हमले दोनों नगरी पर हुए, किंतु दोनों ने सनातन धर्म को बचाए रखा।

– कालगणना के केंद्र के रूप में दोनों नगरी प्रसिद्ध हैं।

– दोनों नगरी साधुओं की अखाड़ा परंपरा को आधार देती हैं।

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