केंद्र ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे आईटी अधिनियम के सेक्शन 66 ए के तहत मामले दर्ज ना करें। साथ ही अगर उन्होंने इस कानून के तहत कोई मामला दर्ज किया है तो उसे तुरंत वापस लें। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक एडवाइजरी भेजी है जिसमें उन्हें याद दिलाया गया है कि कानून का यह प्रावधान अब अमान्य है। आपको बता दें कि इस पुराने कानून को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीनों पहले ही अपने एक आदेश के द्वारा खत्म कर दिया था। गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश के अनुपालन के लिए कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों को संवेदनशील बनाने के लिए भी कहा है।
गृह मंत्रालय ने राज्यों से यह भी कहा है कि इस बाबत राज्य पुलिस को जागरूक किया जाए और अगर कोई मामला पुराने कानून के तहत दर्ज हुआ है तो तुरंत वह आदेश वापस लिया जाए। दरअसल उच्चतम न्यायालय ने 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए को निरस्त करने के बावजूद लोगों के खिलाफ इस प्रावधान के तहत अब भी मामले दर्ज किए जाने पर आश्चर्य व्यक्त किया और इसे ‘चौंकाने’ वाला बताया था। NGO ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़’ (पीयूसीएल) की ओर से दायर आवेदन में पीयूसीएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख का आरोप है कि 2019 में अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि सभी राज्य सरकारें 24 मार्च 2015 के फैसले को लेकर पुलिस कर्मियों को संवेदनशील बनायें, इसके बावजूद इस धारा के तहत हजारों मामले दर्ज कर लिए गए।
क्या है धारा 66 A?
2008 में एक्ट में संशोधन करके धारा 66(A) को जोड़ा गया जो फरवरी 2009 में लागू हो गया। यह धारा इलेक्टॉनिक डिवाइसेज (डेस्कटॉप, लैपटॉप, टैब आदि) या संचार उपकरण (मोबाइल, स्मार्टफोन आदि) पर आपत्तिजनक कंटेट पोस्ट करने के संबंध में है। इसके तहत दोषियों को तीन साल की जेल या 5 लाख रुपये का जुर्माना या फिर दोनों की सजा मिल सकती है। इस कानून के मुताबिक कोई भी अपमानजनक, अवैध या खतरनाक सूचना भेजना एक दंडनीय अपराध है। इसके दायरे में बहुत सी ऐसी बातें आ गई थीं, जिसे लोग गुस्से में या बिना जाने-समझे भेज देते हैं।