कोरोना में शिक्षा पर बुरी मार, ग्रामीण इलाकों में 48 फीसदी बच्चे पढ़ना-लिखना भूले

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वैसे तो आज विश्व साक्षरता दिवस है, ऐसे में उम्मीद यही होनी चाहिए कि आज के दिन संपूर्ण साक्षरता के करीब हम कहां तक पहुंचे, उसका लेखा-जोखा पेश किया जाय। लेकिन कोरोना महामारी ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए हैं। महामारी का ऐसा असर हुआ है कि बड़ी तादाद में बच्चे स्कूल बंद रहने की वजह से ठीक से पढ़ना-लिखना ही भूल गए हैं। इस बात का खुलासा देश के 15 राज्यों में पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक के स्कूली बच्चों पर किए गए एक सर्वे में हुआ है। यह सर्वे अर्थशास्त्री ज्यां द्रेंज और उनकी कोऑर्डिनेशन टीम द्वारा किया गया है। यह सर्वे असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडीशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के गरीब परिवारों के 1400 बच्चों पर अगस्त महीने में किया गया है।

ग्रामीण बच्चों पर सबसे ज्यादा असर

देश में प्राइमरी और अपर-प्राइमरी स्कूल पूरे 17 महीने यानी 500 से ज्यादा दिन से बंद हैं। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई ही एक मात्र जरिया है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई करना मुश्किल या नहीं के बराबर रहा है। जिसकी वजह से यह पाया गया कि ग्रामीण इलाकों में केवल 8 फीसदी बच्चे ही ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे। 37 फीसदी बच्चे बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं कर रहे हैं और 48 फीसदी बच्चे कुछ शब्दों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं पढ़ सकते हैं। और लॉकडाउन के दौरान 75 फीसदी बच्चों के पढ़ने की क्षमता कम हो गई है। 

इसी तरह शहर में भी केवल 24 फीसदी बच्चे ही ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे। 19 फीसदी बच्चे बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं कर रहे हैं और 42 फीसदी बच्चे कुछ शब्दों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं पढ़ सकते हैं। और लॉकडाउन के दौरान 76 फीसदी बच्चों के पढ़ने की क्षमता कम हो गई है। 

स्मार्टफोन है पर ये चुनौती

सर्वे के अनुसार जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई भी कर रहे हैं। उनके सामने भी कई तरह की चुनौतियां हैं। मसलन शहरों में 77 फीसदी के पास स्मार्ट फोन है लेकिन नियमित पढ़ाई केवल 24 फीसदी बच्चे कर रहे हैं, इसी तरह ग्रामीण इलाकों में 51 फीसदी के पास स्मार्टफोन लेकिन नियमित पढ़ाई केवल 8 फीसदी बच्चे कर रहे हैं। इसकी वजह यह है कि केवल 30-36 फीसदी बच्चों के पास अपना स्मार्टफोन है। इसके अलावा नेटवर्क की समस्या, डाटा न होना, ऑनलाइन पढ़ाई समझ में नहीं आने जैसे कारण सर्वे के जरिए सामने आए हैं।

गरीबी के कारण प्राइवेट स्कूल से पलायन 

सर्वे में यह भी पाया गया कि लॉकडाउन के बाद घटी कमाई की वजह से बहुत से अभिवावकों ने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में उनके दाखिले की कोशिशें शुरू कर दी। सर्वे में 26 फीसदी बच्चे ऐसे मिले जिनके माता-पिता ने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में दाखिला करा दिया।  वहीं कुछ ऐसे भी अभिवावक सामने आए जिन्हें बच्चों का प्राइवेट स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि फीस बकाया होने के कारण स्कूल सर्टिफिकेट नहीं जारी कर रहे हैं।

बच्चे नहीं पढ़ पाए आसान सा वाक्य

“जब से कोरोना महामारी चल रही है तब से स्कूल बंद है”, जैसे आसान वाक्य पढ़ने को लेकर भी चौंकाने वाले तस्वीर सामने आई है। इस वाक्य को शहर में कक्षा छह से आठवीं के केवल 58 फीसदी बच्चे, सहीं से पढ़ पाए। जबकि ग्रामीण इलाकों में केवल 57 फीसदी ही इस वाक्य को सही तरीके से पढ़ पाए। इसी तरह सर्वे में यह पाया गया है कि ऑफलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चों की संख्या बेहद कम है। एक बात और सामने आई है कि अगस्त में किए गए सर्वे से 30 दिन पहले तक शहरों में 51 फीसदी और ग्रामीण इलाके में 58 फीसदी बच्चों की तीन महीने से अपने शिक्षकों से संपर्क नहीं हो पाया है। 

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