जिला अस्पताल में बीते कुछ दिनों के दौरान कोरोना से मौत के तांडव ने शासन- प्रशासन और जिलेवासियों को स्तब्ध कर के रख दिया, आखिर ऐसी क्या बिगड़ैल व्यवस्था हो गई की मरीजो को इलाज के लिए आक्सीजन की कमी होने लगी। नतीजा अस्पताल में मरीजो के लिए बेड फूल हो गए और श्मशान में मुर्दों जलाने के लिए वेटिंग शुरू हो गई।
मौत के तांडव से मृतकों के परिजनों ने अस्पताल की चार दीवारी की बात बाहर तक लाई और जानकारी दी कि अस्पताल में ऑक्सीजन की बेहद कमी है। लेकिन जिला अस्पताल के स्टोर से ऑक्सीजन प्राइवेट अस्पतालों और होम आइसोलेशन पर इलाज करवा रहे लोगों को बेची जा रही है। इसलिए जिला अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी लोगों की जान की सौदागर बन गई है? जिलेवासियों को पूरी बात समझ में आ गई कि बालाघाट में ऑक्सीजन का बड़ा गड़बड़झाला चल रहा है।
क्योकि 11 अप्रैल को जिले के जिलाधीश महोदय ने प्रेस के सामने इस बात का ऐलान किया था कि जिला अस्पताल में ऑक्सीजन की व्यवस्था पर्याप्त है। फिर ऐसा क्या हुआ कि एक-दो दिन के भीतर पूरी ऑक्सीजन हवा में गुल हो गई। और मरीजो के लिए आक्सीजन का सर्टेज हो गया।
सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार ऑक्सीजन की कमी और उससे हो रही मौत के आंकड़े ने शासन प्रशासन के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा दी आखिर मंथन करना पड़ा कि इतनी ऑक्सीजन गई कहां।
सूत्रों की बातों पर यकीन करे तो जिला अस्पताल के ऑक्सीजन स्टोर्स से ही आक्सीजन की कालाबाजारी का पूरा खेल चल रहा था, और यहां पर जिम्मेदार इस पूरे खेल को संचालित कर रहे थे।
तभी तो होम आइसोलेशन पर इलाज करवा रहे लोगों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल रही थी। और अस्पताल में बूंद-बूंद हवा के लिए मरीज तड़प कर मौत के काल मे समा रहे थे।
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल के स्टोर से ऑक्सीजन की कालाबाजारी की बात माननीय महोदय तक पहुंची उन्होंने स्वयं आगे आकर पूरे गोरखधंधे पर नकेल कसने के लिए ऑक्सीजन के स्टोर के कर्मचारी को फटकार लगाई। सूत्रों तो यहां तक बताते है कि जिला अस्पताल की इस बिगड़ेल व्यवस्था को सुचारू करने के लिए और आखिरी जन के इस गोरखधंधे पर नकेल कसने के लिए जिले में इन दिनों सेवाएं दे रहे एक ट्रेनी आईएएस अधिकारी को जल्द ही जिला अस्पताल की कमान सौप दी जाएगी। जिससे आगामी दिनों में ऑक्सीजन की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके।
दर्जनों मौत के बाद शासन-प्रशासन की आंखें खुली जिनके घरों के चिराग बुझ गए वे तो यही कहेंगे बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते थोड़ा जल्द आ जाते तो आज भी चिरागों में रोशनी कायम रहती?