(उमेश बागरेचा )
१५ वे राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू निर्वाचित हो गई है । मुर्मू देश की पहली आदिवासी, हैं जो राष्ट्रपति पद पर आसीन हुई है। यह एक सुखद अनुभव है की एक आदिवासी और वह भी महिला देश के सबसे उच्च पद पर विराजित हो रही है । लेकिन आज के राजनैतिक दौर में जातियों को अलग अलग समूहों में विभाजित कर आपस वैमनस्यता का जहर जो पिलाया जा रहा है वह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले भारत देश के भविष्य को जातिगत संघर्ष के रास्ते पर ले जा रहा है । ऐसा नहीं है कि भारत में जातीय संघर्ष नही रहा हो ,पूर्व में भी जातिगत विद्वेष असीमित रहा है, इसी का परिणाम भी रहा कि ,आज अनुसूचित जाति जनजाति तथा ओबीसी वर्ग को आरक्षण देकर , उच्च वर्ग के बराबर लाने का प्रयास काफी हद तक सफल रहा है । लेकिन लगभग सभी राजनैतिक दल सत्ता हथियाने की होड़ में अलग अलग जातियों को आपस में भिड़ाने का जाने अंजाने में प्रयास कर रहे है, और उनके इन प्रयासों के चलते अब राजनैतिक दलों के जनप्रतिनिधियों की अपनी अपनी पार्टियों के प्रति निष्ठा जाति रही है । अब तो ऐसा महसूस होने लगा है की सभी पार्टियां अब जातीय आधारित हो जाना चाहिए क्योंकि पंच, सरपंच, से लेकर विधायक ,सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री , प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक का चुनाव जातीय आधार पर होने लगा है । राजनैतिक पदो के लिए योग्यता तो गौण हुई है लेकिन पार्टियों के अंदर भीतरघात एवं हॉर्स राइडिंग बहुत अधिक बढ़ गई है।सबसे बड़ी बात यहां यह है की अब राजनैतिक दलों के व्हिप को भी विधायक, सांसद नही मान रहे है ,जिसके कारण कुछ राजनैतिक दलों का अस्तित्व भी मटियामेट हो रहा है । राजनैतिक दलों के व्हिप के उल्लंघन का अभी ताजा मामला राष्ट्रपति चुनाव है जिसमे १४ राज्यो में १२० विधायको और १७ सांसदों ने अपने अपने दलों के व्हिप के खिलाफ जाकर भाजपा प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया । इस व्हिप के उल्लंघन के जो कारण है उसमे एक तो स्वजाति है दूसरा जो सबसे बड़ा कारण है उसमे यह बताया जाना की अगर जो जनप्रतिनिधि भाजपा प्रत्याशी को मतदान नही करेगा उस पर सामाजिक रूप से आदिवासी समाज की खिलाफत करने का तमगा जड़ दिया जाएगा । जातिगत शब्द बोध,के बोझ तले भाजपा के अनेक कट्टर विरोधी दलों ने भी अपने घुटने टेक दिए कि कही आदिवासियों का वोट बैंक नाराज न हो जाए इसलिए पार्टीगत नीतियों को तिलांजलि देते हुए भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने का फैसला ले लिया ,इसमें उन्होंने २०२४ में विपक्ष की एकता के प्रयासों की भी आहुति दे दी ।