ग्लास्गो में हुई COP26 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत द्वारा साल 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने की बात कही है। नेट जीरो को हासिल करने के लिए उन्हों न LIFE यानी लाइफ स्टाइल फॉर एनवॉयरमेंट का फॉर्मूला भी सामने रखा। उन्होंने नेट जीरो हासिल करने के लिए इसे जनांदोलन बनाने की बात कही । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत अभी तक नेट जीरो पर टारगेट तय करने से परहेज करता रहा है। जबकि अमेरिका-चीन सहित कई प्रमुख देशों ने नेट जीरो के लक्ष्य पहले से ही तय कर दिए थे। अमेरिका ने इसके लिए 2050 और चीन ने साल 2060 का लक्ष्य रखा है। ऐसे में सवाल उठता है कि नेट जीरो क्या है
नेट जीरो क्या है
पहली बात यह है कि यहां नेट जीरो एमिशन का मतलब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जीरो करना नहीं है बल्कि उसे बैलेंस करना है। यानी कोई देश, जितना कार्बन उत्सर्जन करता है, उतनी मात्रा में उसे एब्जॉर्ब करने का इंतजाम उसके पास होना चाहिए। और आसान भाषा में समझे तो अगर कोई कंपनी किसी फैक्ट्री से कार्बन की एक निश्चित मात्रा का उत्सर्जन करती है तो इतने पेड़ लगाने होंगे, जिससे वे निकलने वाले ग्रीन हाउस गैस को एब्जॉर्व कर सके। कंपनी नेट जीरो का लक्ष्य ग्रीन ऊर्जा संयंत्र को लगाकर भी हासिल कर सकती हैं।
नेट जीरो क्यों हुआ जरूरी
World Meteorological Organization (WMO) की रिपोर्ट के अनुसार भारत को पिछले साल प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 87 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है। इसी तरह चीन को 238 अरब डॉलर और जापान को 83 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। वही स्विस री इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर 2050 तक पृथ्वी का तापमान 2.0 से 2.6 डिग्री तक बढ़ता है तो पूरी दुनिया की इकोनॉमी को 11 से 13.9 फीसदी का नुकसान होगा।
इसी तरह UNEP की रिपोर्ट कहती है कि अभी अलग-अलग देशों ने जो लक्ष्य तय किए हैं, उससे दुनिया का तापमान इस सदी के अंत तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ेगा। अगर पेरिस समझौते के तहत इस सदी में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य हासिल करना है, तो दुनिया को अगले आठ वर्षों में सालाना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आधा करने की आवश्यकता है।
भारत ने चीन से 10 साल बाद क्यों रखा लक्ष्य
असल में अगर सीधे तौर पर देखा जाय तो भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन करने वाला देश है। उसकी दुनिया में 7 फीसदी हिस्सेदारी है। जबकि चीन की 28 फीसदी और अमेरिका की 15 फीसदी हिस्स्दारी है। ऐसे में अमेरिका और चीन की तरह भारत को 2050 और 2060 तक इस लक्ष्य को हासिल करना चाहिए। लेकिन आबादी के आधार प्रति व्यक्ति उत्सर्जन देखा जाय तो तस्वीर कुछ और नजर आती है। वर्ल्ड मीटर की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में प्रति व्यक्ति कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन 15.12 टन, चीन में 7.38 टन, रूस में 11.44 टन, कनाडा 18.58 टन, कतर में 37.29, कुवैत में 25.65, ऑस्ट्रेलिया में 17.10 टन है। जबकि भारत में यह केवल 1.91 टन है।
साफ है कि दूसरे देश विकास की दौड़ में कहीं ज्यादा उत्सर्जन कर रहे हैं। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देश को भी हक है कि वह पहले अपने देश के लोगों को गरीबी के कुचक्र से निकाले और अपने को विकसित मनाए।
इसी तरह औद्योगीकरण के बाद से दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन डाई उत्सर्जन अमेरिका ने किया है। 1750 से 2019 के दौरान अमेरिका ने 410 बिलियन मिट्रिक टन उत्सर्जन किया है। इसके बाद चीन ने 219.99 बिलियन मिट्रिक टन , रूस ने 113 बिलियन मिट्रिक टन, जर्मनी ने करीब 91 बिलियन मिट्रिक टन उत्सर्जन किया है। जबकि भारत ने अभी तक 51 बिलियन मिट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन किया है। जाहिर है पृथ्वी के बढ़ते तापमान में भारत की हिस्सेदारी और जिम्मेदारी दोनों दूसरे देशों की तुलना में काफी कम है।
पीएम मोदी ने दिया अमृत का मंत्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो में कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में 5 अमृत तत्व का मंत्र दिया है। जिसके आधार पर भारत अपने लक्ष्य हासिल करेगा।
पहला- भारत 2030 तक अपनी जीवाश्म रहित ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करेगा।
दूसरा- भारत 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा मांग, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करेगा।
तीसरा- भारत 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करेगा।
चौथा- भारत 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।
पांचवां- भारत 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।