उमेश बागरेचा,
बालाघाट ( पदमेश न्यूज) । जिले में नए कलेक्टर के रूप में डॉक्टर गिरीश मिश्रा की पदस्थापना की गई है। निवर्तमान कलेक्टर दीपक आर्य ने अपनी नई पदस्थापना सागर जिले में पदभार ग्रहण कर लिया है । जबकि बालाघाट में नवपदस्थ डॉक्टर गिरिश मिश्रा ने अभी पदभार ग्रहण नहीं किया है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि कल बुधवार को वे बालाघाट आकर पदभार ग्रहण करेंगे । कलेक्टर के रूप में डॉक्टर मिश्रा की यह पहली पदस्थापना है। निवर्तमान कलेक्टर दीपक आर्य की भी कलेक्टर के रूप में बालाघाट में पहली पदस्थापना थी। चूंकि यह एक छोटा जिला है इसलिए कुछ एक अपवादों को छोड़ दें तो अधिकांशत: जो भी कलेक्टर आते रहे हैं उनकी बालाघाट में कलेक्टर के रूप में पहली पदस्थापना होती रही है । वे 2- 3 वर्षो में यहां से कलेक्टरी के पूरे गुर सीखकर बड़े जिले की ओर प्रस्थान करते हैं । यहां पदस्थ अधिकांश कलेक्टरों ने जिले की जनता का दिल जीता है । बीते दो दशक में निवर्तमान कलेक्टर दीपक आर्य पहले ऐसे कलेक्टर है जिनकी छवि आम जनता तथा मीडिया में अच्छी नहीं मानी गई । उनकी कार्यप्रणाली को लेकर जनप्रतिनिधि , आमजनता, मीडिया जगत से लेकर उनके अधीनस्थ प्रशासनिक अमले में भी काफी नाराजगी देखी गई। वे अपने पारिवारिक सदस्यों को लेकर भी आलोचना के शिकार होते रहे । रिश्ते में करीबी को बालाघाट में ठेकेदारी कराने तथा पत्नी को इंटीरियर डिजाइनर के नाम पर आर्थिक लाभ पहुंचाने का आरोप एक पूर्व विधायक ने लगाया। जयस्तंभ चौक से अंबेडकर चौक के बीच रोड़ डिवाइडर में लगी मूर्तियों को इन्ही बातों से जोडक़र देखा जाता रहा है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि कलेक्टर बंगले के बाहर दीवार पर एक साइड में दीपक आर्य की नेम प्लेट लगी है तो दूसरे साइड में उनकी पत्नी के नाम की प्लेट लगी है, इसे लेकर भी काफी आलोचना हुई, बावजूद इसके वह नेम प्लेट नहीं हटी, जो सिविल सेवा आचरण का उल्लंघन है। इससे भविष्य में होगा यह कि कलेक्टर का रिश्तेदार बंगले में बोर्ड लगाकर अपना निजी व्यवसाय या प्रोफेशनल कार्य कर सकता है। शहर विकास के नाम पर जितने भी सही गलत कार्य हुए है उनमें पत्नी का मार्गदर्शन प्रमुख रहा है ऐसी जन चर्चा है । शहर के पचासों साल पुराने अच्छे हरे-भरे पेड़ों को कटवाकर इन्होंने शहर में पर्यावरण को छती पंहुचाई है । अच्छे-खासे उद्यानों को उजाड़ा है, जिसमें बस स्टैंड का मुलना उद्यान भी शामिल है । पिछले लगभग एक वर्ष से कलेक्टर आर्य नगर पालिका के प्रशासक रहे, इस दौरान पालिका की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था चरमराई रही, यहां अनियमितताओं का सिलसिला चला। अतिक्रमण हटाने के नाम पर कुछ के रोजगार छीने तो कुछ सफेदपोशों को आबाद किया। बावजूद इसके आज पहले से ज्यादा अतिक्रमण शहर में दिखाई देने लगा । 42 करोड़ की नल जल योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई । रोड़ एवम् नालों के निर्माण में पालिका को चूना लगा । खरीदी और निर्माण जैसे ऐसे अनेक कार्य है जिन पर उंगली उठाई जा रही है । महिला एवं बाल विकास विभाग का सत्तू कांड भी चर्चित होकर दफन हो गया। कोविड काल में अनेक आरोप लगे । जिले में हेल्थ सेंटरों के रेनोवेशन की भी अनेक कहानियां इनके नाम है। रातों रात शहर में फर्जी मल्टीस्पेशलिटी कॉलेज खुलवा दिया इस कॉलेज में सेवाएं देने के लिए एक निजी चिकित्सक को कलेक्टरी की धमकी दी गई। आज उक्त मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल जांच के दायरे में आकर सील किया हुआ है । कोविड के समय जिला चिकित्सालय में हुई खरीदी में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। ऑक्सीजन सिलेंडर की हेराफेरी हुई, वेंटीलेटर खरीदी में भ्रष्ट आचरण अपनाया गया। रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कालाबाजारी को प्रश्रय मिला। जिला चिकित्सालय का इन्होंने कायाकल्प किया ऐसा कहा जाता है तो उसमें भी उनका निर्माण कार्य में स्वार्थ होना प्रमुख था, जबकि अस्पताल की अव्यवस्था के बारे में हर कोई जानता है । ठेके की आड़ में लूट मची हुई है । मशीनें लगी है जो उपयोग में नहीं आती या तो खराब है या ऑपरेटर नही है । बिना पैसे मिले डॉक्टर मरीज को हाथ नहीं लगाते ये आरोप पिछले दिनों आशा कार्यकर्ताओं ने भी लगाया। कुल मिलाकर यह कि इन्होंने जिला या शहर हित में ऐसा कोई एक भी अच्छा कार्य नहीं किया है जिसके लिए इन्हें याद किया जा सके। पदस्थापना के शुरुआती 6 माह ठीक थे लेकिन बाद में वे एक ऐसे घेरे में घिर गए कि आम जनता उनकी पहुंच से दूर हो गई ,व्यावसायिकता प्रमुख ध्येय हो गया । अधीनस्थ कर्मचारी को मिलने हेतु घंटो इंतजार करते रहते थे, जिससे उनमें भी असंतोष था। आम जनता के बीच या किसी वर्ग के व्यक्ति ने इनके खिलाफ मुंह खोला तो सीधे पुलिस एफआईआर की धमकी, कुछेक के खिलाफ तो बकायदा पुलिस कार्यवाही भी की गई क्योंकि पुलिस प्रमुख तो इनकी छाया बने हुये थे। और ये सब इसलिये संभव होता रहा क्योंकि यहां के माननियों का कुछ कारणों से इनपर दबाव का अभाव रहा है। अब नए पदस्थ कलेक्टर डॉक्टर गिरीश मिश्रा के सामने कई प्रकार की चुनौतियां रहेगी , मसलन सत्तापक्ष तथा विपक्ष के जनप्रतिनिधियों के साथ सामंजस्य बनाकर काम करना, शहर की आधी अधूरी पड़ी नल-जल योजना का कार्य पूर्ण करना, शहर की यातायात व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करना, प्रधान मंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार को रोककर पात्र को समय पर भुगतान की व्यवस्था कराना, अवैध निर्माण पर अंकुश, किसानों की समस्याओं से रूबरू होना, रेलवे ओवरब्रिज की अटकी फाइल को आगे बढ़ाना, समिट की आड़ में जमीनों को हड़पने की कोशिश को समझना, बाय पास रोड निर्माण, नामांतरण, पट्टा, रजिस्ट्री के लिए परेशान जनता को राहत दिलाना, दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन बसर कर रहे गरीब, आदिवासी , बैगाओं की समस्याओं को समझकर उसका निदान करना । अब देखना यह है कि नव पदस्थ कलेक्टर डॉक्टर गिरीश मिश्रा क्या निवर्तमान कलेक्टर दीपक आर्य के पदचिन्हों पर चलते हुए किसी काकस की गिरफ्त में होकर कार्य करते हैं या अपने नाक – कान – आंख खोल बगैर भेदभाव नि:स्वार्थ होकर जनहितार्थ के कार्य को तवज्जो देते हैं ।