केसी त्यागी
भारतीय राजनीतिक इतिहास में 2024 का लोकसभा चुनाव खास है। यह चुनाव देश, संविधान, आरक्षण तथा लोकतंत्र पर आधारित रहा है। चुनाव के नतीजों ने इन्हीं सिद्धांतों को साफ-साफ दोहराया है। हालांकि, BJP के नेतृत्व वाले NDA ने 290 से अधिक सीटें प्राप्त कर बहुमत हासिल कर लिया, लेकिन विपक्ष भी महत्वपूर्ण स्थिति में उभरकर आया है। जनता का फैसला इससे अधिक स्पष्ट नहीं हो सकता था। इसका आशय है कि जनता चाहती है विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों की राजनीतिक आकांक्षाओं के प्रति BJP का रुख अधिक समझौतावादी और कम टकरावपूर्ण हो। परिणाम BJP को जवाबदेह बनाता है और पहले से अधिक रचनात्मक व कल्याणकारी योजनाओं के लागू होने की मांग करता है।
BJP को लोकतांत्रिक भावना से उस संदेश पर ध्यान देना चाहिए और 10 वर्षों के बाद गठबंधन की राजनीति के फिर से उभरने की वास्तविकता के प्रति खुद को फिर से उन्मुख करना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र के केंद्र में लोग हैं और लोग होने भी चाहिए। इसलिए यह चुनाव कई आयामों पर भारतीय राजनीति के एक क्रांतिकारी पुनर्गठन का संकेत देता है। यह विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच शक्ति का एक बेहतर संतुलन बहाल करता है। राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली सभी प्रमुख पार्टियों को इस जनादेश से सही सबक सीखना चाहिए। भारतीय लोकतंत्र की जीवनरेखा इसकी विविधता है, इसे भी सभी दलों को समझना चाहिए।
एकरूपता नहीं चलेगी
2024 लोकसभा चुनाव ने यह भी उजागर किया कि भारत में चुनावी सफलता किसी पार्टी की विभिन्न जातियों और समुदायों को प्रभावी ढंग से एकजुट करने, सामाजिक विरोधाभासों का प्रबंधन करने और विविध आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करने की क्षमता पर निर्भर करती है। सामाजिक रूप से सबसे वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व सभी दलों को सुनिश्चित करना ही होगा। हमें इस बात पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है कि कई जातीय-समुदायों को सामाजिक-राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिए बगैर चुनावों में सफल नहीं हुआ जा सकता। विशेष रूप से यूपी जैसे महत्वपूर्ण राज्य में तो बिल्कुल नहीं। सभी दलों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए अटूट प्रतिबद्धता दिखानी होगी और यह मानना चाहिए कि सामाजिक न्याय चुनाव, शासन और नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत का कोई भी राजनीतिक दल इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता।