चीनी वैज्ञानिकों ने लैब में बनाया कोरोना वायरस’, एक और रिसर्च में दावा- मिला ‘यूनिक फिंगरप्रिंट’

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लंदन : कोरोना वायरस की उत्‍पत्ति का पता लगाने के लिए नए सिरे से जांच की मांग के बीच एक अन्‍य अध्‍ययन में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस चीनी वैज्ञानिकों ने ही वुहान के लैब में बनाया। इस शोध के अनुसार, खतरनाक कोरोना वायरस को चीनी वैज्ञानिकों ने लैब में बनाया और फिर रिवर्स-इंजीनियरिंग वर्जन के जरिये इसे ढकने की कोशिश की, ताकि यह चमगादड़ से प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ नजर आए।

यह सनसनीखेज दावा ब्रिटेन और नार्वे के वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया है, जिसके मुताबिक, अध्‍ययन में जिन सैंपल्‍स को शामिल किया गया था, उन पर अलग तरह के फिंगरप्रिंट भी मिले। ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, शोध के दौरान कई ऐसे तथ्‍य सामने आए, जिससे जाहिर होता है कि यह लैब में छेड़छाड़ के बगैर नहीं हो सकता।

रिपोर्ट के मुताबिक, यह अध्‍ययन एचआईवी वैक्‍सीन पर सफलतापूर्वक काम कर चुके ब्रिटिश प्रोफेसर एंगस डल्‍गलिश और नार्वे के वैज्ञानिक डॉ. बिर्गर सोरेनसेन ने मिलकर किया। इसमें यह भी कहा गया है कि चीन ने वुहान लैब में प्रयोग से जुड़े डेटा को जानबूझकर नष्‍ट किया, इसे छिपाया और इससे छेड़छाड़ की।

अमेरिका ने दिए हैं ये निर्देश

यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है, जबकि कोरोना वायरस की उत्‍पत्ति को लेकर अमेरिका और चीन एक बार फिर आमने-सामने हैं। एक अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ ऐसे सबूत हैं, जो इस ओर इशारा करते हैं कि यह वायरस चीन की एक प्रयोगशाला से लीक हुआ और देखते ही देखते इसने महामारी की शक्‍ल ले ली। इसके बाद अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडन ने देश के खुफियाकर्मियों को 90 दिनों के भीतर इसका पता लगाने के लिए कहा है कि यह वायरस आखिर कहां से फैला। अमेरिका के इस रुख के बाद चीन बौखलाया हुआ है। उसने बाइडन प्रशासन पर इस मसले को लेकर ‘राजनीति’ करने का आरोप लगाया और कहा कि अमेरिका ‘तथ्यों और सच्चाई की परवाह नहीं करता और न ही उसकी रुचि वैज्ञानिक तरीके से वायरस की उत्‍पत्ति का पता लगाने में है।’ चीन ने जोर देकर कहा कि अमेरिका को इस मसले पर WHO के साथ सहयोग करना चाहिए।

चीन इस मामले में बार-बार विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) की मार्च की उस रिपोर्ट का हवाला दे रहा है, जो चीनी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर तैयार की गई थी। इसमें किसी लैब से वायरस फैलने की आशंका को ‘बहुत ही कम’ बताते हुए कहा गया था कि इस दिशा में अभी और शोध किए जाने की जरूरत है।

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