समाज में एेसा बहुत कुछ घटित होता है, जो सकारात्मक है। इस सकारात्मकता को समाज के सामने पुरजोर सम्मान के साथ रखना अखबार का दायित्व होता है। नईदुनिया इसी प्रयास में आज से शुरू कर रहा है विशिष्ट स्तंभ- नाम ही काफी है। इसमें ऐसे दिग्गजों की कहानी होगी, जिन्होंने परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए ईमानदारी, सच्चाई, विश्वास और संवेदनशीलता के साथ जीवन में अद्भुत सफलता पाई। अब उनका नाम ही उनका सबसे बड़ा परिचय है। आज शुभारंभ कर रहे हैं जबलपुर के दिग्गज कारोबारी विवेक अग्रवाल से। जिनकी दो पीढ़ियों की मेहनत ने छोटे से कारोबार को सफलता की ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया। सामाजिक सरोकार व जरूरतमंदों की सेवा में अग्रवाल परिवार के सदस्य कभी पीछे नहीं हटते। अलंकार नाम सुनते ही यह मान लिया जाता है कि आभूषण शोरूम की बात हो रही है।
सदर में अलंकार ज्वेलर्स नाम से कभी छोटी सी दुकान हुआ करती थी। चार भाइयों ने 1968 में आभूषण कारोबार की शुरुआत की थी। उनके अथक परिश्रम को अगली पीढ़ी ने नया मुकाम दिया और छोटा सी दुकान बड़े शोरूम के रूप में सामने आई। सदर बाजार मुख्य मार्ग पर स्थित शोरूम की भव्यता देखते ही बनती है। शोरूम संचालक सेठ कम्पाउंड सदर निवासी विवेक अग्रवाल कहते हैं कि दुकान से शोरूम का सफर तय करने में कठिन परिश्रम व ईमानदारी तथा संयुक्त परिवार की अहम भूमिका रही। संयुक्त परिवार में 27 सदस्य हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य व्यापारिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों मेें अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रहा है। शोरूम में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी भी प्रांत का ग्राहक पहुंचे उसकी पसंद यानी उसके क्षेत्र में प्रचलित डिजाइन के आभूषण के लिए उसे निराश न होना पड़े।
ऐसी रही यात्रा-
विवेक अग्रवाल ने बताया कि उनके पिता श्याम बिहारी अग्रवाल (76) अपने अन्य भाइयों अंबिका प्रसाद अग्रवाल, गिरधारीलाल अग्रवाल व मुरारीलाल अग्रवाल के साथ 1968 मं अलंकार ज्वेलर्स नाम से कारोबार की शुरुआत की थी। सदर की एक गली में तब छोटी सी दुकान हुआ करती थी। वर्ष 2004 में दूसरी पीढ़ी ने कारोबार को नया स्वरूप देने की ठान ली। जिसके फलस्वरूप सदर मुख्य मार्ग पर अलंकार ज्वेलर्स नामक शोरूम ग्राहकों की सेवा के लिए समर्पित किया गया। पिता श्याम बिहारी शोरूम संचालन की सभी गतिविधियों से जुड़े रहते हैं। इस उम्र में भी वे शोरूम में पर्याप्त समय देते हैं। अंबिका प्रसाद, गिरधारीलाल व मुरारीलाल अब इस दुनिया में नहीं हैं परंतु उनके द्वारा स्थापित मापदंड शोरूम की उत्तरोत्तर प्रगति में सहायक हैं। विवेक ने बताया कि वे अपने बड़े भाई अरुण अग्रवाल व छोटे भाई आशीष अग्रवाल के साथ शोरूम की जिम्मेदारी संभालते हैं। 90 के दशक तक दुकान के साथ आभूषण निर्माण का कारखाना था। जिसके बाद बाजार का पैटर्न बदला। तरह-तरह की डिजाइन के रेडीमेड आभूषण मिलने लगे। स्थानीय डिजाइनरों की जगह बड़े शहरों से नए-नए डिजाइन के आभूषणों को ग्राहकों के लिए उपलब्ध कराया जाने लगा।