नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि 24 मार्च, 1971 के बाद असम आने वाले सभी बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं और उन्हें जितना जल्दी हो निकाला जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा है कि बांग्लादेशियों को नागरिकता दिए जाने को लेकर हुए असम समझौते के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में धारा 6ए का विशेष प्रावधान वैध है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि एनआरसी डेटा को अपडेट करके बांग्लदेशी घुसपैठियों की पहचान और उनके निर्वासन की पक्की व्यवस्था होनी चाहिए। इस पर असम के पूर्व एनआरसी कोऑर्डिनेटर ने आशंका जताई कि एनआरसी अपडेट में घुसपैठिये फर्जी दस्तावेज दिखाकर अपना नाम जुड़वा लेंगे और कोई नहीं निकाला जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह एनआरसी अपडेशन और घुसपैठियों के निष्कासन की प्रक्रिया की निगरानी करेगा।
असम आए बांग्लादेशियों के लिए 25 मार्च, 1971 कट ऑफ डेट फिक्स
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम आने वाले सभी बांग्लादेशी प्रवासियों को अवैध घोषित कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इन प्रवासियों का राज्य की संस्कृति और जनसांख्यिकी पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। केंद्र और राज्य सरकारों को इनकी पहचान, पता लगाने और निर्वासन में तेजी लानी चाहिए।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने चार-एक के बहुमत से सुनाया। पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा। यह धारा दिसंबर 1985 में 15 अगस्त, 1985 को अस्तित्व में आए असम समझौते के अनुरूप पेश की गई थी। यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार और असम के छात्र संघों के बीच हुआ था जो बांग्लादेशियों के बड़े पैमाने पर अवैध आवक के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। धारा 6ए को सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह नागरिकता प्रदान करने के लिए संविधान में निर्धारित तिथि से अलग है।
बांग्लादेशियों की नागरिकता का नियम समझ लीजिए
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए के तहत 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिक माना जाएगा। उसने यह भी साफ-साफ कहा कि 1 जनवरी, 1966 और 24 मार्च, 1971 के बीच राज्य में आने वालों को कुछ शर्तों के अधीन 10 साल बाद ही नागरिकता दी जानी थी।