जावेद अख्तर की जिंदगी का ‘जादूनामा’ लॉन्च:इसमें सूरमा भोपाली से लेकर एंग्री यंग मैन गढ़ने के किस्से

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दिल्ली में चल रहे उर्दू के सबसे बड़े मेले ‘जश्न-ए-रेख्ता’ में उर्दू अदब की शख्सियत जावेद अख्तर जब एक किताब पलटा रहे थे तब उनकी जुबान से लेखक के लिए निकला, ‘आपने तो कमाल कर दिया, ये फोटो तो मेरे खुद के पास नहीं हैं, आपने कहां से जुटा लिए। मुझ जैसे व्यक्ति पर आपने इतनी मेहनत कर दी, किसी दूसरे पर करते तो पीएचडी मिल जाती।’

ये किताब थी जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी ‘जादूनामा’। इसके लेखक अरविंद मण्डलोई हैं और इसका प्रकाशन मंजुल पब्लिकेशंस ने किया है। ये किताब जादू से जावेद बनने के किस्सों और दास्तानों को समेटे हुए है। जादू जावेद अख्तर का निकनेम है। करीब 450 पन्ने की इस किताब के कई ऐसे पहलू हैं, जो अमूमन लोगों को पता नहीं हैं। जब जावेद साहब ने पहली बार किताब देखी तो उनका चेहरा खिल उठा।

इस किताब की लॉन्चिंग के मौके पर जैसे ही जावेद अख्तर का नाम लिया गया हजारों की जनता का शोर गूंजने लगा। जावेद साहब हमेशा की तरह कुर्ता पायजामा पहने, आदाब-आदाब करते हुए चले आए। विमोचन कार्यक्रम की शुरुआत में जावेद अख्तर की शख्सियत और किताब की विशेषताओं के बारे में बताया गया।

भोपाल में 56 साल पहले जिस जगह से अंग्रेजी की ख्वाजा अहमद अब्बास की किताब ‘इंकलाब’ खरीदी थी, उसी लॉयल बुक डिपो के मंजुल प्रकाशन ने आज मुझ पर किताब छापी है। हंसते हुए बोले ‘पुराना इन्वेस्टमेंट आज काम आया।’

इस दौरान किताब पर चर्चा और अपने अतीत को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ‘वो एक बार जब मुंबई में कोहिनूर मिल्स के सामने से बेटी जोया के साथ गुजरे तो उससे उन्होंने कहा कि संघर्ष के दिनों में एक बार उन्होंने यहां से 20 पैसे के चने खरीदे थे और 8 मील पैदल चलकर यहां से गुजरे थे। उन्हें उम्मीद थी कि बेटी शायद इमोशनल हो जाएगी, लेकिन जोया ने कहा, ‘तब तो 20 पैसे में बहुत चने आ जाते होंगे।’ ये किस्सा पूरा होते ही मजमा ठहाके लगाने लगा। फिर वो बोले कि मेरी बेटी जोया का सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का है।

माहौल संजीदा होने पर जावेद साहब ने कहा कि दुनिया में भूख से बड़ी कोई तकलीफ नहीं होती, इसके आगे सब बेमानी है। जब वो ये कह रहे थे तो मजमे में से एक लड़की ने खड़े होकर ‘वक्त’ गजल की फरमाइश कर दी। तो वो बोले ‘कोई इन्हें बता दो कि क्या टाइम हुआ है।’ जावेद साहब के सटीक सेंस ऑफ ह्यूमर ने भीड़ को कायल कर दिया। इस मौके पर जावेद अख्तर मंजुल पब्लिकेशन के विकास रखेजा को मुबारकबाद देना नहीं भूले।

‘शायरी संजीदगी और तसल्ली से होती है’
‘तरकश’ और ‘लावा’ नाम की दो किताबों के बाद कोई नई किताब नहीं आने के सवाल पर जावेद अख्तर बोले कि कमर्शियल फिल्में तो ऑडियंस की पसंद को ध्यान में रखकर बनती है, जबकि शायरी संजीदगी और तसल्ली से होती है। कोई ख्याल ऐसा हो जो पूरा और अनोखा हो, तभी मैं लिख पाता हूं, वर्ना नहीं लिखता।

लेखक मण्डलोई ने बताया सलीम-जावेद की जोड़ी का राज
‘जादूनामा’ के लेखक मण्डलोई ने बताया कि किताब के दौरान जब उन्होंने जीपी सिप्पी से बात की तो उन्होंने सलीम-जावेद की जोड़ी का एक राज खोला। उन्होंने कहा, ‘शोले के डायलॉग जावेद अख्तर साहब ने लिखे थे, बाकी फिल्मों में भी उन्होंने ही डॉयलॉग लिखे।’ जादूनामा शीर्षक को लेकर उन्होंने बताया कि जावेद साहब का निकनेम जादू है, इसलिए जिंदगी के हिस्से समेटने वाली किताब का नाम ‘जादूनामा’ रखना तय किया।

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