जिला मुख्यालय सहित जिलेभर में आवारा श्वानों का आतंक दिनोंदिन बढ़ रहा है। एक दिन पहले तिरोड़ी के मिरगपुर गांव से ऐसी ही एक घटना सामने आ चुकी है। दरअसल, जिलेभर में आवारा श्वानों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए जिम्मेदार गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। इसका नतीजा है कि श्वानों द्वारा राह चलते लोगों पर हमला कर जख्मी करने की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं। आपको बता दें कि करीब छह साल पहले पशु चिकित्सा सेवा विभाग और नगर पालिका ने बढ़ती संख्या को रोकने नर श्वानों की नसबंदी करने की योजना बनाई थी, लेकिन पशु चिकित्सा सेवा और नगर पालिका के बीच सामंजस्य की कमी के चलते ये योजना आज तक धरातल पर नहीं आ सकी। तब विभाग ने नगर पालिका को इस कार्य के लिए करीब ५ लाख रुपए का बजट उपलब्ध कराने के लिए प्रपोजल भेजा था, लेकिन आज तक इस संबंध में नगर पालिका की ओर से बजट उपलब्ध नहीं कराया गया। बजट न मिलने से पशु चिकित्सा सेवा विभाग ने भी इस ओर ध्यान देना बंद कर दिया। यानी 6 साल पहले बनी योजना अब ठंडे बस्ते में जा चुकी है।
आपको बता दें कि प्रदेश स्तर पर हर पांच साल में आवारा श्वानों की गिनती की जाती है। आंकड़े बताते हैं कि बालाघाट में श्वानों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। यही वजह है कि रात के समय दो पहिया वाहन चालक श्वानों के हमले में घायल हो जाते हैं या फिर गली-मोहल्ले में घूमने वाले श्वान लोगों पर अचानक हमला कर देते हैं। इस संबंध में पशु चिकित्सा सेवा विभाग के उप संचालक डॉ. पीके अतुलकर ने बताया कि बालाघाट सहित जिलेभर में आवारा श्वानों की संख्या पर ब्रेक लगाने के लिए नए सिरे से योजना बनाई जा रही है। जल्द ही कलेक्टर से मिलकर इसकी रूपरेखा बनाई जाएगी। श्री अतुलकर ने बताया कि ऐसी योजनाओं के लिए शासन से अलग से बजट नहीं मिलता है। इसलिए हम ऐसी कोई स्वयंसेवा संस्था ढूंढ रहे हैं, जो श्वानों की नसबंदी योजना में आर्थिक मदद कर सके।
पशु चिकित्सा सेवा विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, दो साल पहले जिलेभर में 15843 श्वानों की गिनती की गई थी। वर्तमान में ये आंकड़ा 17 से 18 हजार के पार जा चुका है। विभाग भी मानता है कि समय के साथ आवारा श्वानों की संख्या बढ़ रही है, जिसे नियंत्रित करने के लिए नसबंदी ही एकमात्र उपाय है, लेकिन लंबे समय से इस योजना पर ध्यान न देने के कारण योजना का क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। श्री अतुलकर ने बताया कि शहर में आवारा श्वानों की संख्या रोकने के लिए नसबंदी करना बेहद जरूरी है। इतना ही नहीं नसबंदी के बाद श्वानों की देखरेख के लिए शेल्टर होम या पोस्ट ऑपरेटिव केयर यूनिट जिले में कहीं नहीं है। इसलिए जिला मुख्यालय में एक शेल्टर होम या केयर यूनिट बनाना भी बेहद जरूरी है। वहीं, इस संबंध में नगर पालिका के प्रभारी सीएमओ नितिन चौधरी ने बताया कि ये मामले मेरे संज्ञान में नहीं था। जल्द ही इस संबंध में विभाग से संपर्क कर योजना के तहत कार्य किया जाएगा।