‘टाइम बम’ से खेलते रहे लोग, फिर इतने समय बाद क्‍यों सताई भारतीय रेगुलेटरों को चिंता?

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निवेश की दुनिया के बादशाह कहे जाने वाले वॉरेन बफे ने दो दशक पहले ही डेरिवेटिव्स को लेकर आगाह किया था। उन्होंने इसे ‘टाइम बम’ बताया था। भारत में भी पिछले कुछ सालों में शेयर बाजार में तेजी के साथ युवा निवेशकों ने डेरिवेटिव्स में जमकर पैसा लगाना शुरू कर दिया है। लेकिन, अब सरकार और नियामक संस्थाएं इस बेलगाम होते बाजार पर लगाम लगाने की तैयारी कर रही हैं। काफी समय पहले ही वॉरेन बफे ने अपनी कंपनी बर्कशायर हैथवे के शेयरधारकों को लिखे अपने एक वार्षिक पत्र में डेरिवेटिव्स को लेकर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था, ‘हम इन्हें टाइम बम की तरह देखते हैं, जो न सिर्फ कारोबार करने वालों बल्कि पूरी आर्थिक व्यवस्था के लिए खतरा हैं।’ बफे ने डेरिवेटिव्स को ‘वित्तीय विनाशकारी हथियार’ बताते हुए कहा था कि इनसे होने वाले खतरे अभी छिपे हुए हैं, लेकिन ये बेहद घातक साबित हो सकते हैं।’

दरअसल, डेरिवेटिव्स अनुबंध होते हैं जिनका मूल्य किसी अंतर्निहित संपत्ति जैसे स्टॉक या कमोडिटी से जुड़ा होता है। इनका इस्तेमाल जोखिमों से बचाव या फिर बाजार के रुझानों पर सट्टा लगाने के लिए किया जा सकता है।

युवा न‍िवेशकों ने क‍िया है F&O की ओर रुख

पिछले कुछ सालों में भारत में मध्यम वर्ग के लोगों ने शेयर बाजार में जमकर पैसा लगाया है। इस दौरान एक नया निवेशक वर्ग भी उभरा है जो कम समझदारी और ज्यादा मुनाफे के लालच में बफे के बताए ‘टाइम बम’ यानी डेरिवेटिव्स के साथ खिलवाड़ कर रहा है। युवा निवेशक स्टॉक फ्यूचर्स और ऑप्शंस जैसे डेरिवेटिव्स में ऐसे ट्रेड कर रहे हैं जैसे कल होगा ही नहीं। वे जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं या फिर वित्तीय आजादी की चाहत रखते हैं।

फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) ट्रेडिंग में ऐसे अनुबंध शामिल होते हैं जिनका मूल्य किसी अंतर्निहित संपत्ति, जैसे स्टॉक या कमोडिटी, से जुड़ा होता है। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदार और विक्रेता दोनों को भविष्य की एक निश्चित तारीख और कीमत पर लेनदेन करने के लिए बाध्य करते हैं, जबकि ऑप्शंस होल्‍डर को एक निश्चित अवधि के भीतर निर्धारित कीमत पर संपत्ति खरीदने या बेचने का अधिकार देते हैं, लेकिन बाध्यता नहीं होती है।

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