तीन चेहरों पर मुस्कुराहट और कहीं जल गई आग! ब्रिक्स समिट में मोदी-शी के साथ पुतिन का यह इशारा अमेरिका समझ तो रहा होगा

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नई दिल्ली: रिश्तों पर जमे बर्फ पिघलें, तनाव खत्म हो, शांति और सहयोग की बात हो तो किसे बुरा लगता है? यह प्रश्न वैश्विक कूटनीति के लिहाज से हो और खिलाड़ी भारत और चीन हों, तो जवाब है अमेरिका को। ‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं’ की नीति पर चलने वाले अमेरिका को लगता है कि वो जादूगर है और दुनिया उसकी कठपुतली। आदत जाते-जाते जाती है, मुगालता टूटते-टूटते टूटता है। रूस के शहर कजान से आईं तस्वीरें अमेरिका के मुगालते को तोड़ने वाली ही हैं। वहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच गर्मजोशी की आईं तस्वीरों ने ‘देख अमेरिका जल मरे’ जैसी स्थिति पैदा कर दी है।

ब्रिक्स समिट के लिए मोदी, पुतिन और जिनपिंग कजान में हैं। वहां तीनों नेताओं की मुलाकात हुई। यह मुलाकात भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर जारी तनाव के कम होने के बाद हुई है। दोनों देशों के बीच 2020 से पहले के पेट्रोलिंग अरेंजमेंट पर सहमति बनी है। राष्ट्रपति पुतिन ने मंगलवार को रात्रि भोज दिया। इस मौके पर वो मोदी और जिनपिंग के बीच बैठे। इससे पहले की तस्वीरों में पुतिन, मोदी का गले लगाकर स्वागत करते दिख रहे हैं, जो दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों को दर्शाता है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी के अनुसार, नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग बुधवार को ब्रिक्स समिट के दौरान एक द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे।

मोदी और शी के बीच आखिरी मुलाकात अक्टूबर 2019 में मामल्लपुरम में एक अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी। फिर चीन ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर अतिक्रमण करने की कोशिशें कीं और रिश्ते बिगड़ते गए। चार साल से ज्यादा समय से दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव की स्थिति रही। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में काफी कड़वाहट आ गई थी। यह झड़प दोनों देशों के बीच दशकों में हुई सबसे गंभीर सैन्य झड़प थी। लेकिन अब भारत-चीन ने तनाव से पहले की स्थिति में लौटने का फैसला किया है। कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं के बाद भारत-चीन ने ब्रिक्स समिट से ठीक पहले पुराने पेट्रोलिंग अरेंजमेंट को ही मानने पर रजामंदी जताई।

हाल के महीनों में भारत-चीन के वरिष्ठ नेताओं के बीच कई बैठकें हुई हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 4 जुलाई को कजाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन और 25 जुलाई को लाओस में आसियान से जुड़ी बैठकों के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी 12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स की बैठक के दौरान वांग यी से मुलाकात की थी।
तमाम दबावों के बावजूद भारत की तरफ से रूस के साथ रिश्तों को निबाहने से तनिक भी बाज नहीं आना और अब चीन के साथ तनाव खत्म करना, अमेरिका और उसकी अगुवाई वाले वर्ल्ड ऑर्डर के लिए सिरदर्द से कम नहीं। भारत, चीन का आपसी तालमेल और रूस का सहयोग 21वीं सदी को एशिया की सदी होने की भविष्यवाणी सही साबित करने पहली शर्त है। कजान से आई तस्वीरें इसी शर्त को पूरी करती दिख रही हैं।

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