दिमागी खेल, मनगढ़ंत बातें और अलगाव… डिजिटल अरेस्ट स्कैम की असली वजह

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नई दिल्ली: देश के बड़े शहरों में शुमार मुंबई में डिजिटल गिरफ्तारी के नाम पर लोगों को ठगने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले साल एक फाइनेंस कंपनी की सहायक निदेशक को वीडियो कॉल पर पुलिस अधिकारी बनकर एक आदमी ने ड्रग तस्करी का आरोप लगाया। उसे ‘डिजिटल हिरासत’ में रखा गया। डरी हुई महिला ने लगभग 1 लाख रुपये दे दिए। एक IT प्रोफेशनल को भी ‘डिजिटल अरेस्ट’ किया गया। वह 25 लाख रुपये गंवाने ही वाला था कि उसका वाईफाई कनेक्शन चला गया और वह बच गया। डिजिटल गिरफ्तारी में ठग लोगों को डराते हैं, उन्हें अकेला कर देते हैं, झूठी बातें बताते हैं और पैसे ऐंठ लेते हैं।

दो महीनों में 15 मामले

मुंबई पुलिस ने पिछले साल ऐसे 195 मामले दर्ज किए थे और इस साल के पहले दो महीनों में ही 15 मामले सामने आ चुके हैं। साइबर पुलिस का कहना है कि ज्यादातर शिकार वरिष्ठ नागरिक होते हैं, लेकिन पढ़े-लिखे लोग जैसे बैंकर, डॉक्टर और बड़ी कंपनियों के डायरेक्टर भी ठगी का शिकार हो रहे हैं। एक पीड़ित ने बताया कि जब वह काम के लिए निकलने वाली थी, तभी सुबह 8:45 बजे उसे एक कॉल आया। कॉल करने वाले के पास उसका आधार नंबर था। उसने कहा कि उसके भेजे गए पार्सल में ड्रग्स मिला है। महिला को अपने बेडरूम में बंद रहने और परिवार से बात न करने के लिए कहा गया। उसे धमकी दी गई कि FIR दर्ज होने पर विदेश जाने का मौका खतरे में पड़ जाएगा। उस समय महिला को सिर्फ यही लग रहा था कि जैसे-तैसे इस मुसीबत से बाहर निकलना है।

ये लोग आसानी से बनते हैं शिकार

डॉक्टर अविनाश डी सूसा का कहना है कि ठग उन लोगों को निशाना बनाते हैं जिनके पास पैसा है, समाज में इज्जत है। जब इन चीजों पर खतरा आता है, खासकर जान का खतरा, तो लोग डर जाते हैं। एक बुजुर्ग ने बताया कि ठग ने उसकी बेटी को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी तो उसने 9 लाख रुपये दे दिए। डॉक्टर डी सूसा ने कहा कि जब लोगों को लगता है कि उनके परिवार को खतरा है, तो वे तुरंत समाधान चाहते हैं। कोई भी नहीं चाहता कि उसके परिवार को कोई नुकसान हो। अगर पैसे देने से मामला सुलझता है, तो लोग वही करते हैं।

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