संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (United Nation’s Inter governmental Panel on Climate Change) ने अपनी छठवीं आकलन रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया पहले ही, बर्फ की चादरों के पिघलने, समुद्र के बढ़ते स्तर और बढ़ते अम्लीकरण के मामले में अपरिवर्तनीय बदलाव झेल रही है। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से कुछ बदलाव अब रोके नहीं जा सकते और ये सौ या हजारों वर्षों तक जारी रहेंगे। इन्हें केवल उत्सर्जन में कमी से धीमा किया जा सकता है। भारत भी इस पैनल का हिस्सा है।
इस रिपोर्ट में सबसे गंभीर बात ये है कि जलवायु परिवर्तन के जिन खतरों का भविष्य में आने की आशंका थी, वो पहले ही दिखने लगे हैं, और इनकी भरपाई शायद ही संभव हो। जैसे कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर को वापस लाने में अब शायद सैकड़ों या हजारों साल लग जाएंगे। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक 21वीं सदी के दौरान दक्षिण एशिया में हीटवेव और उमस भरी गर्मी और बढ़ेगी। IPCC के मुताबिक इनमें से अधिकांश प्रभाव अपरिवर्तनीय हैं और इसलिए ग्रीनहाउस गैस इमीशन में गिरावट आने पर भी दूर नहीं किया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते तापमान से दुनिया भर में मौसम से जुड़ी भयंकर आपदाएं आएंगी।
भारत पर कितना पड़ेगा असर
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने चेतावनी दी है कि कुछ सालों में भारत को भी तीव्र गर्मी का सामना करना पड़ेगा। हिंदूकुश और हिमालय में ग्लेशियर्स का पीछे हटना, समुद्र के स्तर में वृद्धि और बाढ़ की ओर ले जाने वाले तीव्र चक्रवातों के मिश्रित प्रभाव, एक अनिश्चित मानसून, जलवायु परिवर्तन ये सब भारतीय उपमहाद्वीप पर देखे जा सकते हैं। IPCC ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है।
IPCC ने कहा एशिया में ऊंचे पहाड़ों पर, जिसमें हिमालय शामिल है, अब बर्फ पड़ना कम हो गया है और ग्लेशियर पतले हो गए हैं। हालांकि काराकोरम ग्लेशियरों ने पीछे हटने की कोई बड़ी प्रवृत्ति दर्ज नहीं की है। 21वीं सदी के दौरान बर्फ से ढके क्षेत्रों और बर्फ की मात्रा में कमी जारी रहेगी, और उत्सर्जन में वृद्धि के साथ ग्लेशियर की मोटाई में और गिरावट आने की संभावना है। बढ़ते वैश्विक तापमान और बारिश से ग्लेशियल झील के फटने और झीलों पर भूस्खलन की घटना बढ़ सकती है। भारत ने हाल ही में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पहाड़ों में बाढ़ और भूस्खलन की आपदाओं का सामना किया है। पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी और न्यूनतम तापमान में कमी आई है। ये रुझान आने वाले दशकों में एशिया में जारी रहेंगे।