प्लास्टिक की बर्बादी को कम करने के लिए केंद्र द्वारा सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध आज (शुक्रवार) से लागू हो गया है। सिंगल यूज प्लास्टिक आमतौर पर ऐसी वस्तुएं होती हैं। जिन्हें केवल एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है। इस प्रकार के प्लास्टिक का अक्सर उचित तरीके से निपटान नहीं किया जाता है। दरअसल डिस्पोजेबेल प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित होते हैं। इसलिए उन्हें रीसायकल करना मुश्किल होता है। भारत सिंगल प्लास्टिक के इस्तेमाल करने वाले टॉप 100 देशों में आता है।
सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम्स पर 1 जुलाई से बैन
– प्लास्टिक कैरी बैग, पॉलीथीनjavascript:false
– प्लास्टिक स्टिक वाले ईयर बड्स
– गुब्बारों के लिए प्लास्टिक स्टिक
– प्लास्टिक के झंडे
– कैंडी स्टिक
– आइसक्रीम स्टिक
– थर्माकोल
– प्लास्टिक की प्लेट और कप
– मिठाई के डिब्बो को रैप या पैक करने वाली फिल्म
– सिगरेट का पैकेट
– कटलरी, कांटे, चम्मच और चाकू
– इनविटेशन कार्ड
– स्टिरर
सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन क्यों जरूरी है?
प्रदूषण फैलाने में सिंगल यूज प्लास्टिक सबसे बड़ा कारण है। भारत सरकार के मुताबिक देश में 2018-19 में 30.59 लाख टन और 2019-20 में 34 लाख टन से अधिक सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा जेनरेट हुआ। सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी चीजें डी-कंपोज नहीं होती हैं और न इन्हें जलाया जा सकता है। इससे जहरीले धुएं से हानिकारक गैस निकलती है। रिसाइक्लिंग के अलावा स्टोरेज करना ही उपाय है।
क्या है सिंगल यूज प्लास्टिक?
सिंगल यूज प्लास्टिक का मतलब उन प्रोडक्ट से है। जिसे एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता है। यह आसानी से डिस्पोज नहीं होता। सिंगल यूज वाले प्लास्टिक में पैकेजिंग से लेकर बोतलें, पॉलिथीन बैग, फेस मास्क, कॉफी कप, क्लिंग फिल्म, कचरा बैग और फूड पैकेजिंग जैसी चीजें आती हैं।
अब क्या विकल्प है?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लोगों से इको-फ्रेंडली विकल्प चुनने का अनुरोध किया है। सरकार ने प्लास्टिक थैलियों की बजाय कॉटन थैलियों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है। कहा है कि प्लास्टिक की थैलियों की जगह नेचुरल क्लोथ का उपयोग किया जा सकता है। ऑर्गेनिक कॉटन, ऊन या बांस से बने टिकाऊ कपड़े धोने पर प्लास्टिक के रेशे नहीं छोड़ते हैं।