‘रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद से ही हम लगातार अपने वतन लौटने के प्रयास में थे। इसके लिए वे लगातार रोमानिया स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों से संपर्क भी कर रहे थे। लेकिन, छात्रों की सुरक्षा को देखते हुए अधिकारी उन्हें यूक्रेन में ही रहने की सलाह देते रहे। आखिरकार 26 फरवरी को हम 40 छात्र-छात्राओं ने यूक्रेन के ओडेसा शहर से 700 किमी दूर रोमानिया बार्डर तक पहुंचने के लिए करीब 10 लाख रुपये खर्च कर एक बस किराए पर ली। आखिरकार हमारा ये फैसला सही रहा। जैसे ही बस ओडेसा से निकली, आधा घंटे बाद रसियन आर्मी ने शहर पर मिसाइल दाग दी। जिसमें भारी तबाही हुई। शुक्र है कि हमारी बस में भारतीय ध्वज तिरंगा के पोस्टर-बैनर लगे थे। रसियन आर्मी इसे देखकर सम्मान के साथ हमें आगे बढ़ने देती रही।
ये अनुभव यूक्रेन से वापस वतन लौटे करेली तहसील के आमगांव बड़ा निवासी डा. प्रियांशु गौतम ने सुनाए।
मंगलवार रात करीब 10 बजे फ्लाइट से रोमानिया के रास्ते नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे डा. प्रियांशु फिलहाल दिल्ली में ही हैं। यहां उन्हें मप्र सरकार के अधिकारियों ने रिसीव किया। बुधवार को उन्हें जबलपुर तक के लिए हवाई टिकट भी दिया था लेकिन मेडिकल काउंसिल का काम होने के कारण वे नहीं आए। प्रियांशु गुरुवार को श्रीधाम ट्रेन से यात्रा शुरू कर शुक्रवार सुबह करेली रेलवे स्टेशन पहुंचेंगे।
मौत के साये में 26 घंटे तक सफर में खाए सिर्फ बिस्किट: मोबाइल पर चर्चा करते हुए डा. प्रियांशु गौतम ने बताया कि 26 फरवरी की सुबह उन्होंने अपने अन्य 39 साथियों के साथ एक बस किराये पर ली। औसतन एक छात्र ने 14-14 हजार रुपये किराया दिया। यूक्रेन के ओडेसा शहर से रोमानिया बार्डर तक के सफर में उन्होंने अपनी बस में तिरंगे के पोस्टर लगा रखे थे। जैसे ही बस ओडेसा से निकली वैसे ही रसियन आर्मी की मिसाइल दाग दी गई। 700 किमी का सफर 26 घंटे का था। इस दौरान खाने-पीने के नाम पर उनके पास सिर्फ बिस्किट थे। प्रियांशु बताते हैं कि पूरे सफर के दौरान कई जगह रसियन आर्मी ने बस की चेकिंग की, तिरंगा देखकर उन्हें बिना किसी तकलीफ के आगे जाने दिया। कई जगह तो तिरंगा देख बस भी नहीं रोकी गई। इस दौरान हर तरफ लाशें, धमाके, बंदूक लिए रसियन-यूक्रेनियन आर्मी के जवान गोलीबारी करते रहे। मौत के साये के बीच किसी तरह वे 27 फरवरी को रोमानिया की बार्डर पर पहुंचे। इसके आगे बस को जाने की अनुमति नहीं थी। यहां से शरणार्थी कैंप की दूरी करीब 20 किमी थी। जिसके बाद सभी छात्र 15 से 20 किमी का सामान लेकर पैदल ही चले। कैंप पहुंचने पर यहां पर पहले ही करीब 3000 छात्र माइनस 3 डिग्री सेल्सियस में कतारबद्ध दिखे। उन्होंने भी कुछ घंटे लाइन में खड़े होकर बिताए। भारतीय दूतावास के अधिकारियों से संपर्क होने पर उन्हें होटलिंग और निश्शुल्क फ्लाइट की सुविधा मिली। जिसके बाद वे अपने वतन लौट सके।
यूक्रेन-रोमानिया में मिला भरपूर प्यार: डा. प्रियांशु गौतम के अनुसार यूक्रेन व रोमानिया में उन्हें भरपूर प्यार मिला। जब वे यूक्रेन छोड़ रहे थे तब उनकी हास्टल वार्डन ने उनसे किराया भी नहीं लिया। सभी छात्रों के सकुशल घर पहुंचने की कामना के साथ फिर मिलने की उम्मीद जताई। उनका बहुत सा सामान भी हास्टल में ही है। वार्डन ने उनसे कहा है कि जब वे लौटेंगे तो सामान सुरक्षित रहेगा। प्रियांशु बताते हैं कि जिस वक्त वे किराए पर बस कर रहे थे तब छात्रों के दल के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। ऐसे में यूक्रेनियन नागरिकों, परिचितों ने उनकी मदद की। रोमानिया पहुंचने पर भी उन्हें स्थानीय लोगों ने भरपूर प्यार दिया।