प्रनूतन बहल की अगली फिल्म हेलमेट है, जो कंडोम जैसे टैबू सब्जेक्ट पर बनी है। फिल्म में उनके अपोजिट अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी आदि कलाकार हैं। फिल्म से लेकर पापा मोहनीश बहल से मिली टिप्स आदि पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। प्रस्तुत है, बातचीत का प्रमुख अंश:
टैबू सब्जेक्ट पर बनी हेलमेट में आपका किरदार कैसा है? जब फिल्म अप्रोच की गई, तब पहला रिएक्शन क्या रहा?
मेरा रूपाली का कैरेक्टर बहुत फनलविंग है। बड़ी मुंहफट और देसी फटाखा है। अपने बॉयफ्रेंड लकी से बेहद प्यार करती है। मुझे जब यह रोल ऑफर हुआ, तब काफी एक्साइटेड थी, क्योंकि एक यूनिक स्क्रिप्ट का हिस्सा बनने जा रही थी। मेरा रिएक्शन यही था कि वाह! वाह!! अच्छी कहानी पर काम करने का मौका मिल रहा है।
ट्रेलर में एक डायलॉग है- मेडिकल स्टोर में कंडोम न मांग पाना राष्ट्रीय समस्या है। पर्सनली इस समस्या को कैसे देखती हैं?
दुर्भाग्य से यह समस्या है और यही फिल्म का टॉपिक है। यह समस्या क्यों है, जबकि कंडोम खरीदना कोई खराब चीज नहीं है। बल्कि अच्छी चीज है, क्योंकि आप सावधानी ले रहे हैं। पर्सनली मुझे लगता है कि यह समस्या नहीं होनी चाहिए। हम जब कुछ सही कर रहे हैं, तब शर्म नहीं आनी चाहिए।
आपके अनुसार, इस समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है?
आइ थिंक, हम जब इस समस्या के बारे में बात करने लगें, तब इसे दूर किया जा सकता है। पहली बात तो यह समझें कि यह एक समस्या है, तब जाकर इस समस्या का हल निकाल सकते हैं। यही हेलमेट फिल्म का गोल है कि इस पर डिसकस होना चाहिए, इसमें कोई गलत बात नहीं है। लोग जब फिल्म देखेंगे, तब उन्हें समझ में आएगा कि यह अच्छी सोच के साथ बनी है। संदेश यही है कि कंडोम खरीदना कोई टैबू सब्जेक्ट नहीं है। हमें शर्माना नहीं चाहिए। आपको छुप-छुपकर और डर-डरकर ऐसी चीजें नहीं करनी चाहिए, जैसा कि कोई अपराध या गलत कर रहे हैं। एक बात और कहना चाहूंगी कि यह बड़ी फन फिल्म है। इसे अपने परिवार के साथ देख सकते हैं।
ऐसे सब्जेक्ट पर बात करने के लिए आप कितना ओपन हैं?
यह लाइफ में नेचुरल बात है। मुझे नहीं लगता कि किसी को भी शर्माना चाहिए। फिल्म में भी यही दिखाया गया है कि मेरा कैरेक्टर बहुत पावर थिंकिंग और प्रोग्रेसिव है। बड़ी एक्सप्रेशनल गर्ल है। लड़के ही क्यों कंडोम परचेज करें, इसमें कुछ गलत बात नहीं है कि अगर एक लड़की जाकर मेडिकल स्टोर में कहे कि कि हमें कंडोम चाहिए।
आप इसके बारे में कब अवगत हुईं?
आइ थिंक, 15-16 साल की थी, जब स्कूल में हमें इन सब चीजों के बारे में पता चलाला। लेकिन इसके बारे में गहरी जानकारी यह फिल्म करके मिली, क्योंकि इस फिल्म के लिए काफी रिसर्च किया गया है। फिल्म करके जाना कि इतने बड़े देश में सिर्फ 5.26 पर्सेंट लोग इसे खरीदते हैं। यह संख्या बहुत खतरनाक है। यही वजह है कि हमारी जनसंख्या इतनी बढ़ रही है।
देश की एक समस्या बढ़ती जनसंख्या भी है। इस पर क्या कहेंगी?
डेफिनेटली, हमें इस पर गौर करना चाहिए, जिस पर गौर करने का एक तरीका कंडोम यूज का भी है। अगर गौर नहीं करेंगे, तब हमारी जनसंख्या काफी बढ़ोत्तरी होगी, जो समस्या काफी बड़ी होगी।
सेट का माहौल कैसा होता था? इसकी शूटिंग बनारस के अलावा और कहां-कहां हुई?
सेट पर हम सब एक परिवार की तरह रहते थे। सभी खूब मजाक-मस्ती और एक-दूसरे की टांग-खिंचाई भी करते थे। हम लोग साथ में खाते और डिसकस करते थे। हमारे बीच इतना गपशप चलता था कि डायरेक्टर को बुलाने आना पड़ता था कि चलो, अब हम शॉर्ट लेते हैं। हमारी गप्पे चलती रहती थी। इसकी कुछ 30 दिनों की शूटिंग बनारस में और 10 दिनों का काम मुंबई में हुआ है।
अपारशक्ति खुराना के साथ काम करने एक्सप्रीरियंस कैसा रहा?
अपारशक्ति अच्छे एक्टर के साथ एक नेकदिल इंसान हैं। उन्होंने हमेशा मुझे बहुत इनकरेज और सपोर्ट किया है। हमारी ट्यूनिंग और केमेस्ट्री बहुत अच्छी है, यह फिल्म में भी दिखाई देगी। अपारशक्ति छोटी-सी-छोटी बातों पर एक्साइटेड हो जाते हैं। एक दिन हम शूट कर रहे थे, तब कुछ चूजे फुदक रहे थे। उन्हें देखकर अपारशक्ति बच्चों की तरह चिल्लाने लगे- देखो, देखो। चूजे जंप कर रहे हैं। हम सबको बच्चों की तरह उनकी हरकत देखकर हंसी आ रही थी।
पापा मोहनीश बहल की तरफ क्या टिप्स मिली है? आपके काम को किस तरह से सराहते हैं?
उनकी यही एडवाइज रही है कि हमेशा अपना काम सेंसेरिटी और डेडिकेशन से करो। इस प्रोफेशन में टिके रहना है, तब बड़ी ईमानदारी से काम करना पड़ेगा। मैं कैसे बेहतर कर सकती हूं, उसके बारे में कहते हैं। जब किसी फिल्म पर वर्क कर रही होती हूं, तब उस पर हमारी डिसकशन चलती रहती है। कैरेक्टर को लेकर कुछ डाउट होता है, तब डेफिनेटली बात करती हूं। वे हमेशा सेल्यूशन दे देते हैं।
स्टार की बेटी होने का फायदा और नुकसान किस तरह से देखती हैं?
फायदा वह होता है, जब उसका लाभ उठाया जाए। मेरी जर्नी रही है कि हर बार ऑडिशन के लिए गई हूं। नोटबुक हो या हेलमेट, मुझे हर फिल्म ऑडिशन देकर ही मिली। आगे भी जो भी प्रोजेक्ट कर रही हूं, वह सब ऑडिशन देकर ही कर रही हूं। आप इस बात का कुछ हद तक लाभ उठा सकते हैं, लेकिन बाद में टैलेंट ही दिखाई देगा और वही काम दिलाएगा।
करियर का गोल क्या है?
करियर का गोल है कि बहुत सारी फिल्में करनी है। खुद के लिए बेंचमार्क सेट करने हैं। अच्छे डायरेक्टर और एक्टर के साथ काम करना चाहती हूं।