पांच रुपये किलो बिक रहा संतरा, सौंसर और पांढुर्णा के किसान परेशान

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नागपुर से बेहतर है संतरा

सौंसर और पांढुर्णा का संतरा नागपुर से भी बेहतर होता है, लेकिन किसान दस दिन से ज्यादा संतरा अपने पास नहीं रख सकता। लिहाजा कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने के कारण किसानों को ओने पौने दाम में संतरा बेचना पड़ता है। मेहराखापा में एक कोल्ड स्टोरेज था, लेकिन वो भी बंद पड़ा है। साथ ही प्रोसेसिंग यूनिट भी क्षेत्र में नहीं है। पिपला में एक यूनिट थी, लेकिन वो भी बंद पड़ी है, पिछले साल सातनूर में यूनिट के लिए सर्वे किया गया था, लेकिन उसके आगे बात नहीं बढ़ी। सौंसर क्षेत्र में बागान अनुसंधान केंद्र भी नहीं है, इंडो इजरायल संयुक्त परियोजना के तहत नीबू वर्गीय फल अनुसंधान केंद्र का प्रस्ताव है।

आसान नहीं है खेती

साल में संतरे की दो फसल मिलती है, पहली अंबिया और दूसरी मिरग बार। अंबिया अक्टूबर तक तैयार हो जाती है, इसमें रस ज्यादा होता है। मिरग बार की पैदावार आना शुरू हो गई है, ये संतरा अपेक्षाकृत मीठा होता है। मिरग बार का संतरा दवाई व टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। संतरे की खेती आसान नहीं है, किसान को कलम के लिए नागपुर जाना पड़ता है। पांच साल में पेड़ फल देने की स्थिति में आता है, इसके बाद मौसम और कीट प्रकोप की मार झेलते हुए किसान खाद और कीटनाशक के लिए बाजार में चक्कर लगाता है। दस साल पहले गमोसिस फाईटोप्थोरा रोग की वजह से संतरा के बागान उजड़ गए थे, जिसके बाद केंद्र सरकार के सहयोग से नीबू वर्गीय फलों पर प्रोद्योगिकी अभियान योजना लागू की गई। इसका लाभ भी मिला। 2011 से 2017 तक प्रोजेक्ट पर काम हुआ, लेकिन इसके बाद बजट मिलना बंद हो गया।रूरल हार्टिकल्चर एक्सटेंशन अधिकारी प्रदीप गिद ने बताया कि किसानों को समय, समय पर सलाह दी जाती है, जिससे वो अपनी फसल की बेहतर पैदावार बढ़ा सकें। किसानों को लेकर योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

सौंसर और पांढुर्णा का संतरा नागपुर से भी बेहतर होता है, लेकिन किसान दस दिन से ज्यादा संतरा अपने पास नहीं रख सकता। लिहाजा कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने के कारण किसानों को ओने पौने दाम में संतरा बेचना पड़ता है। मेहराखापा में एक कोल्ड स्टोरेज था, लेकिन वो भी बंद पड़ा है। साथ ही प्रोसेसिंग यूनिट भी क्षेत्र में नहीं है। पिपला में एक यूनिट थी, लेकिन वो भी बंद पड़ी है, पिछले साल सातनूर में यूनिट के लिए सर्वे किया गया था, लेकिन उसके आगे बात नहीं बढ़ी। सौंसर क्षेत्र में बागान अनुसंधान केंद्र भी नहीं है, इंडो इजरायल संयुक्त परियोजना के तहत नीबू वर्गीय फल अनुसंधान केंद्र का प्रस्ताव है।

आसान नहीं है खेती

साल में संतरे की दो फसल मिलती है, पहली अंबिया और दूसरी मिरग बार। अंबिया अक्टूबर तक तैयार हो जाती है, इसमें रस ज्यादा होता है। मिरग बार की पैदावार आना शुरू हो गई है, ये संतरा अपेक्षाकृत मीठा होता है। मिरग बार का संतरा दवाई व टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। संतरे की खेती आसान नहीं है, किसान को कलम के लिए नागपुर जाना पड़ता है। पांच साल में पेड़ फल देने की स्थिति में आता है, इसके बाद मौसम और कीट प्रकोप की मार झेलते हुए किसान खाद और कीटनाशक के लिए बाजार में चक्कर लगाता है। दस साल पहले गमोसिस फाईटोप्थोरा रोग की वजह से संतरा के बागान उजड़ गए थे, जिसके बाद केंद्र सरकार के सहयोग से नीबू वर्गीय फलों पर प्रोद्योगिकी अभियान योजना लागू की गई। इसका लाभ भी मिला। 2011 से 2017 तक प्रोजेक्ट पर काम हुआ, लेकिन इसके बाद बजट मिलना बंद हो गया।रूरल हार्टिकल्चर एक्सटेंशन अधिकारी प्रदीप गिद ने बताया कि किसानों को समय, समय पर सलाह दी जाती है, जिससे वो अपनी फसल की बेहतर पैदावार बढ़ा सकें। किसानों को लेकर योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

छिंदवाड़ा। कोरोना संक्रमण काल में विटामिन सी के लिए संतरे को सबसे बेहतर माना जा रहा है, संतरा जूस और अन्य उत्पाद महंगे दामों पर बाजार में बिक रहे हैं, लेकिन जो किसान अपनी मेहनत से संतरे की पैदावार करता है, उसकी स्थिति जस की तस रहती है। जिले का संतरा नागपुर और रायपुर ही नहीं बांग्लादेश की मंडी की भी शोभा बढ़ाता है, लेकिन किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। किलो के हिसाब से करीब पांच रुपये में ही किसान से व्यापारी संतरा ले रहे हैं, जबकि इसके एवज में दस से 15 रुपये किलो की दर से संतरा निर्यात हो रहा है।

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