पाकिस्तान से आए भोपाल के सात लोगों को मिले भारतीय नागरिकता संबंधी प्रमाण पत्र, गृहमंत्री ने कही ये बात

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पाकिस्तान के जेकोकाबाद से आए सात लोगों को भोपाल में भारत की नागरिकता का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। इनमें से कुछ लोग 10 तो कुछ 15 साल से भारत में रह रहे थे। केंद्र सरकार के नागरिकता संबंधी कानून के बाद उन्हें भरोसा था कि अब वे भारतीय हो जाएंगे, लेकिन नागरिकता का प्रमाण पत्र हाथ में आया तो आज भावुक हैं। केंद्र सरकार को धन्यवाद देते जुबां नहीं थक रही है। उन लोगों के भी आभारी हैं, जिन्होंने मदद की। पाकिस्तान के दिनों को याद करते हुए मुंह का स्वाद कसैला हो जाता है। कहते हैं कि दिक्कतें तो कई थीं, लेकिन सबसे ज्यादा बेटियों की फिक्र रहती थी। रात-रातभर नींद नहीं आती थी। अब प्रमाण पत्र मिल गया है तो चैन से सोने की शुस्र्आत हो गई है।

केंद्र सरकार द्वारा भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत पाकिस्तान से आए लोगों को नागरिकता प्रदान की गई है। 21 अक्टूबर को राज्य के गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने मुकेश थारानी और उमेश थारानी (भारत में 1989 से रह रहे), पुष्पा बाई लालचंद (1982), विनोद छाबड़िया (2008), अनिकेतकुमार और मुस्कान कुमारी (2010) व रीना बाई (2011) को नागरिकता प्रमाण-पत्र सौंपे। उन्‍होंने कहा था कि भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से अल्पसंख्यक समुदाय धार्मिक अत्याचारों से पीड़ित होकर भारत आते रहते हैं। इनमें हिंदू, बौद्ध, सिख, इसाई और जैन शामिल है। इन लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई।

भारतीय होने के बाद पुष्पा बाई ने नवदुनिया को बताया कि उन्हें विश्वास तो था कि देश में उन्हें स्थान मिल जाएगा। यह सपना सच हुआ तो उन लोगों को धन्यवाद है, जिन्होंने भारत से बाहर रह रहे हिंदुओं के बारे में सोचा। प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद है। विनोद छाबड़िया के पिता राजेश छाबड़िया ने कहा कि यहां रहकर हम अपनी संस्कृति से जुड़े रह सकते हैं। एक बार यहां घूमने आए थे तो देखा यहां मंदिर ही मंदिर हैं। इस परिस्थिति को हमारे जैसे लोग ही समझ सकते हैं। अपने धर्म से बच्चों को जोड़ने और उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए यहां बस गए।

कड़वी यादें पीछा नहीं छोड़तीं

इन लोगों में से अधिकांश के पारिवारिक सदस्य अभी भी पाकिस्तान में हैं। वे डरते हैं कि हमने कुछ कहा तो उन्हें वहां तकलीफ होगी। नाम नहीं छापने की शर्त पर दर्द उभर आया। बताया कि वहां सबसे ज्यादा डर बेटियों को लेकर रहता था। कभी भी कुछ भी हो जाता है। मतांतरण के लिए धमकी तो आम बात है। जो इसका विरोध करते हैं, उन पर जुल्म होते हैं। वहां का प्रशासन भी इन मामलों में मौन ही रहता है।

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