हिंदू मान्यताओं के अनुसर सौभाग्यवती महिलाओं का श्राद्ध मातृ नवमी के दिन गुरुवार को आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को किया जाएगा। इस दिन मुख्य रूप से परिवार के सदस्य अपनी मां व परिवार की ऐसी महिलाओं का श्राद्ध करते हैं, जिनकी मृत्यु एक सुहागिन के रूप में होती है। यही कारण है कि इस दिन पड़ने वाले श्राद्ध को मातृ नवमी श्राद्ध कहते हैं।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि मातृ नवमी तिथि बुधवार की रात 8:30 बजे से प्रारंभ होकर 30 सितंबर रात 10:08 बजे तक रहेगी। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध हमेशा नवमी तिथि को ही किया जाता है, भले ही मृत्यु की तिथि कोई भी हो। सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए नवमी तिथि विशेष मानी गई है। मातृ नवमी के दिन पुत्रवधुएं अपनी स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान और मर्यादा के लिए श्रद्धांजलि देती हैं। सभी श्राद्ध का विशेष महत्व है, लेकिन मातृ नवमी श्राद्ध के दिन परिवार की बहू-बेटियों को व्रत रखना चाहिए। इस दिन व्रत रखने से विशेष रूप से महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद मिलता है
कैसे करें मातृ नवमी श्राद्ध
सुबह सूर्योदय से पहले सभी नित्य क्रियाओं से निवृत होने के बाद घर की दक्षिण दिशा में एक हरे रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर सभी दिवंगत पितरों की फोटो रख लें। अगर आपके पास किसी की फोटो न हो तो उसकी जगह एक साबुत सुपारी रख सकते हैं। अब श्राद्धापूर्वक सभी पितरों के नाम से एक दीए में तिल का तेल डालकर जलाएं। एक तांबे के लोटे में जल डालकर उसमें काला तिल मिलाकर पितरों का तर्पण करें। दिवंगत पितरों की फोटो पर तुलसी के पत्ते अर्पित करें। अब व्रती महिलाएं कुश के आसन पर बैठकर श्रीमद्भागवत गीता के नौवें अध्याय का पाठ करें। श्राद्धकर्म पूरा होने के बाद ब्राह्मणों को लौकी की खीर, मूंगदाल, पालक की सब्जी और पूरी आदि का भोजन कराएं। ब्राह्मण भोजन के बाद यथाशक्ति उन्हें दक्षिणा दें और विदा करें।