पेट के खातिर गली मोहल्लों में भीख मांग रहे बच्चे

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“पढ़ेगा इंडिया तभी तो आगे बढ़ेगा इंडिया” शिक्षा को लेकर नए-नए किए जा रहे प्रयोग और अधिक से अधिक बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा देने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए शासन प्रशासन द्वारा अनेक प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही है तकि अधिक से अधिक बच्चे प्रारंभिक शिक्षा हासिल कर सके लेकिन बात अगर बालाघाट जिले की करें तो
जिले में अब भी 3 सैकड़ा से अधिक ऐसे बच्चे है जो आज भी प्रारंभिक शिक्षा से वंचित है। इसे इन बच्चों का दुर्भाग्य ही कहां जा सकता है कि शासन ने 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कर रखा है, जिसके लागू हुए भी कई वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन स्थिति आज भी इसके उलट हैं। इसमें विडंबना की बात तो यह है कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत घर-घर जाकर ऐसे बच्चों को ढुंढकर उन्हें शिक्षा का अधिकार दिलाने का अभियान पूर्व में चलाया गया लेकिन कई जरुरतमंद बच्चों तक जिम्मेदार भी नहीं पहुंच पाए है।

क्या कहता है शिक्षा का अधिकार अधिनियम
जानकारी के अनुसार प्रदेश में कोई बच्चा किसी भी कारणों से प्रारंभिक शिक्षा से वंचित न रहे इसके लिए शासन ने नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2005 बनाया है। जिसे 1 अप्रैल 2010 से सभी जिलों में लागू भी कर दिया गया है। इस अधिनियम के अनुसार प्रदेश के समस्त बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा पाना उनका अधिकार हैं और इस हक को दिलाने की जिम्मेदारी शासन की है।

अब भी शिक्षा से वंचित नौनिहाल
सर्वशिक्षा अभियान के तहत बनाए गए पोर्टल को देखे तो सामने आता है कि जिले में अब भी 1 से 14 वर्ष तक की उम्र के करीब तीन सैकड़ा से अधिक बालक-बालिकाएं प्रारंभिक शिक्षा से वंचित है। यह स्थिति तब है जब शासन ऐसे बच्चों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लाभ दिलाने प्रतिवर्ष करोड़ों रुपया खर्च कर रही है।

इन कारणों से छोड़ रहे शिक्षा
पोर्टल के अनुसार जिले में 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा नहीं मिल पाने के विभिन्न कारण हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत कराए गए सर्वे में कई तरह के कारण सामने भी आए हैं। इनमें प्रमुख रुप से परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होना, छोटे भाई बहनों की देखभाल, विकलांगता या लंबी बीमारी, जानवर चराना व लंबे समय तक गांव से बाहर रहना इत्यादि शामिल है।

खानापूर्ती साबित हो रहा अभियान
जानकारी के अनुसार सर्व शिक्षा अभियान के तहत विगत छह वर्षो से जिले में ऐसे ही शाला त्यागी व अप्रवेशी बच्चों को ढुंढकर उनके भोजन व आवास की व्यवस्था के साथ ही उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दिलाये जाने का अभियान चलाया जा रहा है। हर वर्ष यह अभियान चलाये जाते है बावजूद इसके अब भी तीन सौ की संख्या में नौनिहाल शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। जिससे ऐसे बच्चों के लिए चलाई जा रही तमाम योजनाएं व अभियान खानापूर्ती साबित हो रहा है।

बैहर में सबसे अधिक शाला त्यागी बच्चे
ज्ञात हो कि सर्व शिक्षा अभियान के अमले द्वारा स्कूल शुरू होने के कुछ माह बाद अभियान चलाते हुए जो बच्चे स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं उनके घर जाकर कारणों का पता लगाया जाता है जिसकी वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा रहे है। सर्व शिक्षा अभियान के अमले द्वारा पूर्व में घर घर जाकर बच्चों एवं उनके परिजनों से बात कर करीब 6 सैकड़ा बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाया गया। जो शाला त्यागी बच्चों की संख्या सामने आई है उसमें सबसे अधिक शाला त्यागी बच्चे बैहर ब्लाक में करीब 147 है उसके बाद बिरसा ब्लॉक में 32 बच्चे व परसवाड़ा ब्लॉक में 39 बच्चे शामिल है। इस प्रकार इसी सत्र की बात करें तो 307 बच्चे इस वर्ष पढ़ाई से दूर रहे।

307 बच्चे स्कूल वापस नही आए – डीपीसी मेश्राम
मामले को लेकर दूरभाष पर की गई चर्चा के दौरान सर्व शिक्षा अभियान के जिला समन्वयक पी एल मेंश्राम ने बताया कि जो भी बच्चे स्कूल नहीं पहुंचते हैं उनकी जानकारी एकत्र की जाती है। शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होने के शुरुआत में स्कूल नहीं पहुंचने वाले बच्चों की संख्या 915 थी, जिसके बाद अभियान चलाते हुए घर-घर बच्चों के दस्तक दी गई और उनसे स्कूल नहीं पहुंचने का कारण पता किया गया तथा बच्चों व उनके अभिभावकों से भी बात कर बच्चों को स्कूल भेजने प्रेरित किया गया।जिसके चलते 6 सैकड़ा से अधिक बच्चे स्कूलों में वापस लौटे। वर्तमान सत्र की बात करें तो 307 बच्चे शाला त्यागी के रूप में दर्ज किए गए हैं, बच्चों के स्कूल नहीं पहुंचने के कई कारण हो सकते हैं कई अभिभावक बच्चों को लेकर कमाने के लिए दूर बाहर शहरों में निकल जाते हैं तथा तथा कई अभिभावक अन्य कारणों से भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते। कई बच्चे अपने माता पिता के साथ अन्य दूसरे जगह में चले जाने के कारण शिक्षा से दूर हो जाते हैं।

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