जिले की बरही तहसील में लोकायुक्त की कार्रवाई हुई है। तहसील न्यायालय में रिश्वत लेते एक बाबू को पकड़ा गया है। बाबू का नाम उमेश निगम है। यह रिश्वत नामांतरण को लेकर ली जा रही थी। फरियादी दिलराज अग्रवाल से रिश्वत की मांग की गई थी। इसने नामांतरण के एक प्रकरण में एक आपत्ति लगाई थी। इसके निपटान के लिए रिश्वत मांगी गई थी। जानकारी के अनुसार लोकायुक्त की टीम को देखकर तहसीलदार सहित राजस्व महकमा गायब हो गया। लोकायुक्त जबलपुर की टीम द्वारा गुरुवार को दोपहर तीन बजे के लगभग यह कार्रवाई की गई।
लोकायुक्त निरीक्षक स्वप्निल दास ने बताया कि दिलराज अग्रवाल ने सिजहरा गांव की जमीन बेची थी। खरीदार ने उसे पूरे रुपये नहीं दिए थे। इसका नामांतरण रुकवाने के लिए उसने तहसील न्यायालय में अपील की थी। इसी के एवज में उमेश निगम द्वारा रुपयों की मांग की गई थी। निरीक्षक ने बताया कि मामले में डेढ़ लाख की मांग की गई थी। इस संबंध में लोकायुक्त टीम ने 7 फरवरी को पहले फोन रिकार्डिंग पर यह बात सुनिश्चित कर ली थी कि बाबू द्वारा रिश्वत की मांग की जा रही है। इसके बाद मामले में योजना बद्ध तरीके से कार्रवाई की गई और बाबू को पहली किस्त 50 हजार के साथ ट्रेप किया गया। मामले में बाबू ने 50 हजार की रुपये की रकम अपनी दराज में रखवाई थी। आवेदक दिलराज अग्रवाल ने बताया कि मामले में पटवारी शिव प्रसाद पाठक भी शामिल था। लेकिन वह भाग गया। फरियादी ने बताया कि इससे पहले वह 10 हजार रुपये पटवारी को दे चुका है।
सोनम उपाध्याय को सिजरहा गांव में 20 लाख रुपये में तीन एकड़ पचासी डेसीबल जमीन बेची गई थी। इसका 10 लाख रुपये दिलराज को मिल चुका था। बाकी के 10 लाख रुपये नहीं दिए जा रहे थे। उसके सभी चेक बाउंस हो गए थे। इसके कारण उसने तहसील कार्यालय में नामांतरण रुकवाने के लिए आवेदन किया था। इसके एवज में बाबू उमेश निगम ने रुपयो की मांग की थी।
आम बात है राजस्व में रिश्वत : लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बरही तहसील कार्यालय में रिश्वत आम बात हो गई है। इस कार्यालय में बाबू जैसे कर्मचारी किसी काम के लिए कम से कम 50 हजार रुपये से नीचे की मांग नहीं करते। जिससे क्षेत्रीय लोगों को राजस्व कार्यालय में काम कराने में बहुत रिश्वत देनी पड़ती है। लोगों ने बताया कि भूमाफियाओं के काम के एवज में यहां पर भारी रिश्वतखोरी का माहौल बन गया है।