बाराबंकी के लड़के की वजह से पूरी तरह बदल गया ईरान, लिबरल कंट्री से बना कट्टर इस्लामी मुल्क, जानें ‘खुमैनी’ की कहानी

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ईरान बीते कुछ समय से लगातार दुनियाभर में चर्चा में बना हुआ है। ईरान ने पहले इजरायल के साथ टकराव की वजह से ध्यान खींचा तो फिलहाल अपने दो बड़े नेताओं को हेलीकॉप्टर हादसे में खो देने की वजह से चर्चा में है। हेलीकॉप्टर हादसे में जान गंवाने वाले राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के ईरान का अगला सुप्रीम लीडर बनने के भी कयास थे। ईरान में सुप्रीम लीडर सबसे ताकतवर होता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री जैसे तमाम पद उससे नीचे आते हैं। ईरान के पहले सुप्रीम लीडर रुहोल्लाह खुमैनी थे, जिन्हें 1789 की क्रान्ति के बाद ये पद मिला। रुहोल्लाह खुमैनी को ईरान की राजनीतिक और सामाजिक दिशा पूरी तरह से बदल देने वाला शख्स के तौर पर जाना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि लिबरल देश में पले बढ़े और फिर एक कड़ा धार्मिक शासन लाने वाले खुमैनी का भारत से भी खास नाता था। उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से ईरान गए थे।

ईरान में साल 1979 की इस्लामी क्रांति के जनक रुहोल्लाह खुमैनी जिस ईरान में बड़े हो रहे थे, वह एक उदार देश था। अपने बचपन से ही उनके धर्म, शिया धर्म से गहरा लगाव था, जो उन्हें अपने दादा सैयद अहमद मुसावी हिंदी से विरासत में मिला था। खुमैनी के दादा, शिया मौलवी अहमद हिंदी का जन्म उत्तर प्रदेश में पास हुआ था। वे बेहतर जिंदगी की तलाश में ईरान चले गए थे और उनके पोते रुहोल्लाह इस देश की एक बड़ी क्रान्ति के नायक बनकर उभरे। बाराबंकी में बचपन गुजारने वाले अहमद हिंदी ने भी शायद ही ये सोचा होगा कि पोते को दी गई उनकी तालीम ईरान के इतिहास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी। खुमैनी ईरान के पहले सर्वोच्च नेता बने और इसे एक धार्मिक राज्य में बदल दिया।

लिबरल ईरान बन गया कट्टर धार्मिक देश

रुहोल्लाह खुमैनी ने लिबरल ईरान को एक कट्टरपंथी शिया देश और पश्चिम एशिया में शक्ति के एक अहम केंद्र में बदल दिया। खुमैनी के दादा अहमद हिंदी अगर ईरान नहीं गए होते तो फिर ईरान आज वर्तमान स्वरूप नहीं ले पाता। यह दिलचस्प है कि कैसे उत्तर प्रदेश के एक शहर के परिवार की ईरान को बदल देने में भूमिका है। रुहोल्लाह खुमैनी के दादा और शिया धर्मगुरु सैयद अहमद मुसावी बाराबंकी के पास किंटूर नाम की जगह पर पैदा हुए थे। भारत के साथ अपने जुड़ाव के लिए उन्होंने नामन के साथ ‘हिंदी’ का इस्तेमाल किया। सैयद अहमद मुसावी हिंदी 1830 में बाराबंकी से ईरान चले गए।

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