बालाघाट : जिले मे फिर छाया उर्वरक खाद का संकट

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 एक ओर केंद्र व राज्य सरकार द्वारा किसानों की आय को दोगुना करने और किसानों की हर संभव मदद किए जाने के कसीदे गढ़े जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर केंद्र व राज्य सरकार सहित स्थानीय प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी किसानों को लगातार परेशान करने का काम कर रहे हैं,  जिनका किसानों की विभिन्न समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं है बात अगर खरीफ सीजन की करें तो जिला मुख्यालय सहित अन्य ग्रामीण अंचलों में खरीब के सीजन में उर्वरक खाद का संकट गहराया हुआ है जहां सोसाइटी के माध्यम से किसानों को खाद नहीं मिल पा रही है जिसको लेकर किसान काफी परेशान हैं तो वहीं किसानों को नगदी में ज्यादा रकम देकर बाजार से डीएपी खरीदना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि शासन की तरफ से जिले को रबी सीजन में डीएपी उर्वरक खाद मांग के अनुरूप प्राप्त नहीं हुई है जिसके चलते वारासिवनी, गर्रा ,लांजी सहित जिले के अन्य गोदाम खाली हैं, वहीं सोसायटी द्वारा भेजी गई उर्वरक खाद की डिमांड भी पूरी नहीं हो पा रही है, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है और किसान मोटी रकम देकर मार्केट से खाद खरीदने के लिए मजबूर हैं।बताया जा रहा है कि जिले की विभिन्न प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों द्वारा कई बार उर्वरक खाद के लिए आरओ काटकर वरिष्ठ अधिकारियों को दिया गया है लेकिन खाद की आपूर्ति न होने के कारण अधिकारी भी समिति को खाद नहीं भेज रहे हैं।उधर सोसाइटी में खाद ना होने का व्यापारी जमकर फायदा उठा रहे हैं और किसानों को व्यापारियों से खाद खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है जहां विभिन्न गांवों के किसानों ने डीएपी खाद सोसाइटी में उपलब्ध कराने की मांग की है ।


सोसाइटी में नहीं है खाद,मार्केट में भरा है स्टॉक 
बालाघाट जिला कृषि प्रधान जिला है।लेकिन इसे जिले की बदनसीबी ही कहेंगे कि जिले में खाद का संकट हमेशा बना रहता है, जहां एक ओर जिले के विभिन्न शासकीय गोदामों और सोसायटीयो में खाद नहीं रहती तो वहीं दूसरी ओर व्यापारियों के गोदाम में हर प्रकार की खाद की छल्लीया लगी रहती है। सोसाइटी में खाद ना होने के चलते जिले के किसानों को बाजार से अधिक रकम देकर खाद खरीदनी पड़ती है।जिले में पिछले कई वर्षों से चली आ रही यह परंपरा अब भी कायम है सवाल यह है कि जिन किसानों को आत्मनिर्भर किसान बनाने का सरकार दावा कर रही है उन किसानों को व्यापारियों से खाद खरीदने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है। सवाल यह भी है कि इस व्यवस्था से किसानों की आय दुगनी कैसी होगी और सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस व्यवस्था से किसान आत्मनिर्भर बनेंगे या व्यापारी।


तो क्या जानबूझकर डीएपी खाद नहीं पहुंचा रही सरकार
जिले में गहराए खाद संकट को देखते हुए अब जहन में कई सवाल उठने लगे हैं जानकारों के मुताबिक सरकार जानबूझकर डीएपी खाद मुहैया नहीं करा रही है ज्ञात हो कि इसके पूर्व डीएपी खाद के दाम 1200रु से बढ़ाकर 1950 में किए गए थे उस समय प्रदेश में जमकर बवाल मचा था जहां किसानों के आक्रोश को देखते हुए सरकार ने डीएपी मूल्य का करीब 700 रु का अंतर स्वयं वहन करने की घोषणा की थी इसके मुताबिक डीएपी खाद की एक बोरी भी यदि किसान सोसाइटी से लेता है तो प्रत्येक बोरी के पीछे सरकार को 700 रुपए वहन करना पड़ रहा है इसी वजह से सरकार केवल जिले ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में डीएपी की आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं कर रही है।


मार्केट से खरीदने पर अधिक पैसे लगते हैं-योगेश रहांगडाले
खाद्य संकट को लेकर की गई चर्चा के दौरान ग्राम मुर्री के किसान योगेश राहांडगाले ने बताया कि उन्हें रबी  के समय सोसाइटी से डीएपी खाद मिली थी। उसके बाद उन्हें आज तक डीएपी खाद सोसाइटी के माध्यम से नहीं मिली है वर्तमान समय में डीएपी की बहुत जरूरत है पर समझ नहीं आ रहा है कि सोसाइटी में डीएपी क्यों नहीं मिल रही है, जबकि मार्केट में डीएपी खाद आसानी से मिल जाती है, लेकिन वहां किसानों को 50रु अधिक देकर डीएपी खरीदना पड़ रहा है।


रबी के समय सोसाइटी से मिली थी डीएपी खाद-तिलकचद मेश्राम
वहीं मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान नवेगांव कला के किसान तिलकचद मेंश्राम ने बताया कि क्षेत्र के किसानों को डीएपी खाद नहीं मिल रही है केवल डीएपी ही नहीं बल्कि अन्य खादों में भी संकट गहराया हुआ है डीएपी खाद यदि मिल जाती तो पौधों का ग्रोथ अच्छे से होता डीएपी से पौधा मजबूत बनता है हमें रबी के बाद डीएपी खाद नहीं मिली है सोसाइटी में माल नहीं आया है इसीलिए डीएपी की जगह काला सोडा का उपयोग कर रहे हैं लेकिन उस सोडे में इतना फायदा नहीं है उन्होंने बताया कि सोसाइटी में खाद क्यों नहीं पहुंचाई जा रही है यह सरकार ही बता सकती है क्योंकि देश और प्रदेश में भाजपा की सरकार है और वही सरकार किसानों को परेशान करने का काम कर रही है।


 डीएपी मांगो तो सोसाइटी वाले बोलते हैं कि यूरिया ले जाओ-जगदीश पटले
वही मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान किसान जगदीश पटले ने बताया कि सोसाइटी वाले बोलते हैं कि डीएपी नहीं है उसकी जगह यूरिया लेकर जाओ जबकि फसल में यूरिया डालने पर बीमारी अधिक लगती है डीएपी नहीं मारेंगे तो फसल सही नहीं मिलेगी और नुकसान हो जाएगा वर्तमान समय में डीएपी की बहुत जरूरत है लेकिन सोसाइटी वाले बोल रहे हैं कि माल नहीं आ रहा है।


पूरे जिले में डीएपी नहीं है-गुलाब टेम्बरे
वहीं इस पूरे मामले को लेकर की गई चर्चा के दौरान कृषि साख समिति चिखला के लिपिक गुलाब टेम्भरे ने बताया कि कुछ दिन पूर्व ही उनके यहां डीएपी का स्टॉक खत्म हुआ है। हमने आरो काट कर भेज दिए हैं बालाघाट से जानकारी मिल रही है कि गोदाम में डीएपी खाद ही नहीं है। केवल हमारी सोसाइटी और क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे जिले की सोसाइटी में यही हाल है। पूरे जिले में डीएपी संकट बना हुआ है। किसान आते हैं डीएपी खाद के बारे में पूछते हैं और वापस चले जाते हैं। इसके पूर्व हमने 108 टन डीएपी बेचे थे वर्तमान समय में हमें 90 टन डीएपी की आवश्यकता है। वरिष्ठ अधिकारी बोल रहे हैं कि दो-चार दिनों में नई रैक आएगी तब डीएपी खाद का वितरण किया जाएगा।

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