म्यूकरमाइकोसिस मरीजों की जल्दी पहचान और बीमारी की पुष्टि में अब एक नई परेशानी सामने आई है। आमतौर पर डॉक्टरों का यह दावा रहता है कि नेजल इंडोस्कोपी से इस बीमारी को आसानी से पकड़ा जा सकता है, लेकिन हकीकत में करीब 20 फीसद मरीजों में यह बीमारी इंडोस्कोपी से पकड़ में नहीं आ रही है। दरअसल, इन मरीजों में बीमारी की वजह से नाक में मिलने वाला काले रंग का फंगस नहीं दिख रहा है। अन्य लक्षण होने पर इन मरीजों की एमआरआइ (मेगनेटिक रेसोनेंस इमेजिंग) कराने पर फंगस दिखाई देता है। नाक, कान एवं गला रोग विशेषज्ञों का कहना है कि सर्जरी करने पर ऐसे मरीजों में सायनस के पिछले हिस्से में जमा हुआ काला फंगस दिखाई देता है और उसे निकाला जाता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी कहना है नाक में काले रंग का फंगस जमा होने के पहले ही मरीज अस्पताल आ रहे हैं। इस अवस्था में नेजल इंडोस्कोप से गंभीरता से देखा जाए तो भी बीमारी पता चल सकती है। गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) भोपाल के नाक, कान एवं गला रोग विभाग के सह प्राध्यापक डॉ.यशवीर जेके बताते हैं कि अभी म्यूकरमाइकोसिस के करीब 20 फीसद मरीज ऐसे मिल रहे हैं जिनमें फंगस नेजल इंडोस्कोपी में दिखाई नहीं दे रहा है।
एमआरआइ कराने के बाद जब सर्जरी करते हैं तो सायनस के पिछले हिस्से में काले रंग का फंगस जमा हुआ दिखाई देता और इसे निकाला जाता है। ऐसे में अब अन्य लक्षणों जैसे नाक बंद होना, नाक से गंदा पानी आना, जबड़े में दर्द आदि लक्षणों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
इनका कहना
काले रंग का फंगस दिखने के पहले भी एक अवस्था होती है। इंडोस्कोपी में नाक में एक परत जमी हुई मिलती है। इसे बारीकी से देखा जाए तो इससे फंगस पता चल जाता है। एमआरआइ भी इसीलिए कराई जाती है। बढ़ी हुई अवस्था में फंगस की पुष्टि के लिए केओएच कल्चर और ऑपरेशन के बाद निकले टिश्यू की हिस्टोपैथोलॉजी जांच भी करानी चाहिए। केओएच कल्चर में फंगस की संख्या बढ़ने पर पता चल जाता है कि म्यूकरमाइकोसिस है। हिस्टोपैथोलॉजी में फंगस की शाखाएं दिखती हैं। इस बीमारी की स्थिति में शाखाएं 90 डिग्री एंगल पर होती हैं। लक्षणों और मरीज की हिस्ट्री के आधार पर बीमारी की पहचान करनी चाहिए।
– डॉ. एसपी दुबे नाक, कान एवं गला रोग विशेषज्ञ, भोपाल
यह सही है कि कुछ मरीजों की नाक में फंगस नेजल इंडोस्कोपी में नहीं दिखता। अलग-अलग मरीजोें में यह अलग जगह पर मिल सकता है। कुछ में सायनस के पीछे वाले हिस्से में दिखता है। मरीज अब जल्दी इलाज के लिए पहुंच रहे हैं, इसलिए भी नेजल एंडोस्कोपी में म्यूकरमाइकोसिस नहीं दिखता इसलिए एमआरआइ कराते हैं। लक्षणों के आधार पर बीमारी की पहचान करते हैंं।