ब्रिटेन में ‘राइट टू रिपेयर’ कानून, ताकि बिजली उपकरणों का इस्तेमाल 10 साल ज्यादा हो, इससे पर्यावरण की रक्षा होगी

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ब्रिटेन इन दिनों एक नया कानून बहस का मुद्दा बना हुआ है, वह है ‘राइट टू रिपेयर’। यह कानून ब्रिटेन में गुरुवार से लागू हो गया है। इस नए कानून के तहत बिजली उपकरण बनाने वाले निर्माताओं को कानूनी रूप से उपभोक्ताओं को सामान के स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध कराने होंगे। इस कानून को लाने का मकसद है बिजली उत्पादों के इस्तेमाल में 10 साल का इजाफा हो, इससे पर्यावरण की रक्षा हो सकेगी।

दरअसल, ब्रिटेन में भारत की तरह फ्रिज, एसी, वॉशिंग मशीन जैसे उपकरणों की रिपेयरिंग (मरम्मत) नहीं कराई जाती। वहां यदि सामान खराब हो जाए, तो लोग उसे फेंक देते हैं। इस वजह से इलेक्ट्रॉनिक कचरा अधिक इकट्‌ठा होता है और इसे रिसाइकल करना बड़ी चुनौती होती है। इसलिए सरकार ने बिजली उपकरणों के इस्तेमाल की अवधि बढ़ाने के लिए ‘राइट टू रिपेयर’ (मरम्मत का अधिकार) कानून लागू किया। हालांकि, नए नियमों के अनुसार निर्माताओं के पास स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध कराने के लिए दो साल तक का वक्त है।

दूसरी ओर, कुछ लोग इससे खुश हैं, लेकिन एक धड़े का मानना है कि सरकार का बनाया कानून अधूरा है। ऐसे लोगों का कहना है कि देश में स्पेयर पार्ट्स और मरम्मत से जुड़ी सेवाएं काफी महंगी हैं। ऐसे में कानून में इसका कोई जिक्र नहीं है कि स्पेयर पार्ट्स और मरम्मत सेवाएं सस्ती होंगी या नहीं। यदि नहीं हुईं तो फिर लोग सामान को कचरे में ही फेंकना पसंद करेंगे। वहीं, रिपेयर बिजनेस पैसिफिक के संचालक रॉब जॉनसन ने कहा कि उनकी फर्म अब नए नियमों के कारण इंजीनियरों की भर्ती की उम्मीद कर रही थी।

ग्रीन एलायंस में संसाधन नीति के प्रमुख पर्यावरण विशेषज्ञ लिब्बी पीक ने कहा कि नए नियम लोगों को लंबे समय तक चलने वाले मरम्मत योग्य उत्पाद देने की दिशा में एक पहला कदम हैं। वहीं, बिजली सामान बनाने कंपनी न्यूटन आयक्लिफ के इलियट के अनुसार हम अब भी मरम्मत तो हम अब भी करते हैं। हमने जो सबसे पुरानी मशीन की मरम्मत की वह 25 साल पुरानी थी।

सामान की रिपेयरिंग के लिए महिलाओं के मुकाबले पुरुष सहज

बीबीसी के सर्वे के अनुसार नए नियमों के तहत ब्रिटेन के 22% लोग अपनी वाशिंग मशीन की मरम्मत कराना चाहते हैं। इसमें पुरुष 32% और महिलाएं 14% हैं। लेकिन 16% लोगों को डिशवॉशर की रिपेयरिंग में सबसे ज्यादा असहजता होती है। सर्वे के अनुसार रिपेयरिंग के समय देने में महिलाओं के मुकाबले पुरुष समय देने में सहज रहते हैं। दूसरी ओर, बिजली उपकरण बनाने वाली कंपनियों को लगता है कि इस कानून से उनकी बिक्री पर अधिक फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि, कुछ सामान की रिपेयरिंग अब भी की जाती है।

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