माता टेकरी पर मां तुलजा भवानी और चामुंडा माता विराजमान हैं। किंवदंती है कि देवियों का वास होने के कारण ही शहर का नाम देवास पड़ा। तुलजा भवानी को बड़ी माता और चामुंडा माता को छोटी माता कहते हैं। दोनों को बहनें कहा जाता है।
यहां कालिका माता, अन्नपूर्णा माता, खो-खो माता, अष्टभुजा देवी सहित प्राचीन हनुमान व भैरव मंदिर भी है। चैत्र व शारदीय नवरात्र में बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। शारदीय नवरात्र में तो आंकड़ा पांच लाख से अधिक होता है।
इतिहास-माता टेकरी को रक्त पीठ कहा जाता है। मान्यता है कि सती के ह्रदय स्थल से रक्त की बूंदें माता टेकरी पर गिरी थीं। इस कारण इसे रक्तपीठ कहा गया। इसका इतिहास करीब नौवीं शताब्दी के आसपास का है। कहा जाता है कि किसी समय तुलजा भवानी और चामुंडा माता में विवाद हो गया। इस पर दोनों रूठ गईं। चामुंडा माता पहाड़ में समाने लगीं और तुलजा भवानी पाताल में।हनुमान जी और भैरव जी ने दोनों का क्रोध शांत किया और इसके बाद दोनों यथास्थिति में रुकीं। इसी कारण चामुंडा माता पहाड़ों में रुकीं व तुलजा भवानी के शरीर का आधा हिस्सा पाताल में गया। यहां राजा भर्तृहरि समेत कई योगियों ने तपस्या की। नाथ संप्रदाय का भी इस स्थल से जुड़ाव रहा।दुर्गा पूजा-माता टेकरी पर दोनों माताओं की पूजा का विशेष महत्व है। यहां नाथ संप्रदाय के पुजारी पूजन करते हैं। प्रतिदिन सुबह व शाम को आरती होती है। इसमें पुजारी समेत नियमित दर्शन करने वाले आरती मंडल के सदस्य शामिल होते हैं।नवरात्र में 24 घंटे माता टेकरी पर माता मंदिर के पट खुले रहते हैं। चामुंडा माता देवास सीनियर रियासत की कुलदेवी है। उनके वंशज अष्टमी पर हवन करते हैं। तुलजा भवानी को होलकर व जूनियर रियासत के शासकों की कुलदेवी माना जाता है।