नई दिल्ली: भारत और चीन दोनों के लिए मजबूत होता डॉलर ‘कांटे’ की तरह चुभने लगा है। इसके अलावा अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में हो रही बढ़ोतरी से भी चिंता पैदा हुई है। इनके चलते दुनिया के दूसरे हिस्सों खासतौर से इमर्जिंग मार्केट्स से पैसा खिंचने की आशंका है। बार्कलेज के फॉरेक्स और ईएम मैक्रो स्ट्रेटेजी एशिया के प्रमुख मितुल कोटेचा ने यह बात कही है। हालांकि, अभी साफ नहीं है कि यह पैसा चीन और भारत से निकलकर अमेरिका जाएगा या नहीं। भारत से विदेशी निवेशकों के एक बड़े हिस्से को बाहर निकलते हुए पहले ही देखा गया है। उनके मुताबिक, भारत को लेकर कुछ चिंताएं हैं। इनमें ग्रोथ में सुस्ती और 10 दिसंबर, 2024 को शक्तिकांत दास के रिटायर होने के बाद नए गवर्नर की आशंकाएं शामिल हैं। सिर्फ भारत को ही नहीं, बल्कि चीन और दूसरे उभरते बाजारों को भी मजबूत डॉलर और बढ़ती यील्ड से पूंजी निकासी का सामना करना पड़ सकता है।
भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों पर चर्चा करते हुए मितुल कोटेचा ने कहा कि चीन के प्रोत्साहन पैकेज को लेकर आशावादी माहौल है। इसके चलते शेयर बाजार में तेजी देखी गई। लेकिन, हकीकत यह है कि प्रोत्साहन पैकेज उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। सिर्फ 6 ट्रिलियन युआन के कर्ज की अदला-बदली देखने को मिली। संपत्ति क्षेत्र में कुछ भी ठोस कदम नहीं उठाया गया। उपभोक्ताओं को सीधे नकद हस्तांतरण जैसी किसी भी योजना की घोषणा नहीं की गई।
मितुल ने मुताबिक, ऐसा लगता है कि चीनी सरकार नए ट्रंप प्रशासन और उसकी ओर से लगाए जाने वाले टैरिफ को लेकर सतर्क रुख अपना रही है। ट्रंप ने 60% टैरिफ की बात की है। लेकिन, क्या हकीकत में इसे लागू किया जा सकेगा? अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी भी मजबूत बनी हुई है। डॉलर में तेजी के साथ चीन के प्रति शुरुआती उत्साह कम होता दिख रहा है। इसका असर भारतीय और चीनी शेयर बाज़ारों के बीच पूंजी प्रवाह पर भी दिखाई दे रहा है। मजबूत डॉलर के बीच चीनी मुद्रा युआन पर दबाव बढ़ रहा है। अब सभी की निगाहें दिसंबर में होने वाली चीन की वर्क कॉन्फ्रेंस पर टिकी हैं। इसके बाद अगले साल मार्च में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की बैठक होगी। यहां से कुछ और संकेत मिल सकते हैं।
वैक्यूम क्लीनर की तरह काम कर रहा अमेरिका
मितुल कोटेचा के मुताबिक, अमेरिका अभी विशाल वैक्यूम क्लीनर की तरह काम कर रहा है जो दुनिया भर से पूंजी अपनी ओर खींच रहा है। टैक्स में कटौती, ढील देने वाले नियमों और अमेरिका के अलगाववादी रुख के कारण भारी मात्रा में पूंजी अमेरिका की ओर आकर्षित हो रही है। अमेरिका में बढ़ता राजकोषीय घाटा वहां की इकनॉमिक ग्रोथ को बढ़ावा दे सकता है। डॉलर में मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में ग्रोथ के कारण यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि चीन से निकलने वाला पैसा भारत का रुख करेगा।