भारत के 30% हिंदू पारिवारिक विवाद में मुसलमानों के शरीयत कानून मानने को सही ठहराते हैं, 25% सिख भी समर्थन में

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भारत में मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी संपत्ति विवाद और तलाक जैसे मामलों में इस्लामिक कोर्ट जाने को ही तरजीह देती है। ये फैक्ट अमेरिकी थिंक टैंक PEW की एक स्टडी में सामने आया है। इस स्टडी में सामने आया है कि हिंदू हों या फिर मुस्लिम, जब बात शादी, दोस्ती या दूसरे सामाजिक मामलों की हो तो वे धार्मिक रूप से अलग-अलग जिंदगी जीना ही पसंद करते हैं। सर्वे का शीर्षक ‘भारत में धर्म: सहिष्णुता और अलगाव’ है।

PEW की स्टडी के मुताबिक, भारत में मुस्लिमों की 74% आबादी अपनी इस्लामिक अदालतों (शरीयत कानून) की व्यवस्था का समर्थन करती है। 59% मुस्लिमों ने अलग-अलग धर्मों की कोर्ट का भी समर्थन किया। उनका कहना है कि धार्मिक भिन्नता से भारत को फायदा पहुंचता है। मुस्लिमों की धार्मिक अलगाव की भावना दूसरे धर्मों के प्रति उदारता के आड़े नहीं आती और ऐसा ही हिंदुओं के साथ भी है।

भारत का ज्यूडिशियल सिस्टम कमजोर होगा
स्टडी में बताया गया कि 30% हिंदू इस बात का समर्थन करते हैं कि पारिवारिक विवादों के निपटारे के लिए मुस्लिम अपनी धार्मिक कोर्ट में जा सकते हैं। इस बात का समर्थन करने वालों में 25% सिख, 27% क्रिश्चियन, 33% बौद्ध और इतने ही जैन हैं।

हालांकि, कुछ भारतीयों ने इस बात की भी चिंता जाहिर की है कि इस्लामिक और शरिया कोर्ट की बढ़ोतरी भारत के ज्यूडिशियल सिस्टम को कमजोर करेगी, क्योंकि कुछ लोग उस कानून को नहीं मानते, जिसका पालन सभी लोग करते हैं।

30 हजार लोगों पर हुई स्टडी
2019 के आखिर और 2020 की शुरुआत (कोरोना महामारी से पहले) में यह स्टडी की गई थी। इसमें 17 भाषाओं वाले और अलग-अलग धार्मिक बैकग्राउंड वाले 30 हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया था। इन सभी का कहना था कि वे अपने धार्मिक विश्वास मानने के लिए स्वतंत्र हैं। सर्वे के लिए एजेंसी ने देश के 26 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेश के लोगों से बात की।

धर्म से परे जाकर मान्यताओं पर यकीन
भारत में कई लोग धर्म से परे जाकर कई मान्यताओं को साझा तौर पर मानते हैं। न सिर्फ हिंदुओं की तीन चौथाई आबादी (77%) कर्म में विश्वास करती है, बल्कि मुसलमानों का एक बड़ा तबका इस पर यकीन करता है। 81% हिंदुओं के अलावा 32% ईसाई गंगा नदी की शुद्ध करने की शक्ति में विश्वास करते हैं।

उत्तर भारत में 37% मुसलमानों के साथ 12% हिंदू और 10% सिख सूफीवाद को मानते हैं, जो इस्लाम से सबसे ज्यादा करीब से जुड़ी है। सभी प्रमुख धार्मिक पृष्ठभूमि के ज्यादातर लोगों का कहना है कि बड़ों का सम्मान करना उनकी आस्था के लिए बहुत अहम है।

खुद को दूसरा धर्म मानने वालों से अलग समझते हैं ज्यादातर लोग
कुछ मूल्यों और धार्मिक मान्यताओं को साझा करने के बावजूद, एक देश में, एक संविधान के तहत रहने के बाद भी भारत के ज्यादातर लोग यह महसूस नहीं करते हैं कि उनमें दूसरे धर्म के लोगों की तरह कुछ एक जैसा है। ज्यादातर हिंदू खुद को मुसलमानों से बहुत अलग मानते हैं। अधिकतर मुसलमान यह कहते हैं कि वे हिंदुओं से बहुत अलग हैं। इसमें कुछ अपवाद भी हैं। दो तिहाई जैन और लगभग आधे सिख कहते हैं कि उनमें और हिंदुओं में बहुत कुछ समान है।

80% मुस्लिम और 67% हिंदू दूसरे धर्म में शादी के खिलाफ
प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक, भारत में ज्यादातर लोग दूसरे धर्म में शादी करने के फैसले को सही नहीं मानते। इनमें 80% मुस्लिम और 67% हिंदू हैं। हिंदुओं का कहना था कि ये जरूरी है कि उनके धर्म की महिलाओं को दूसरे धर्मों में शादी करने से रोका जाए। 65% हिंदुओं ने कहा कि हिंदू पुरुषों को भी दूसरे धर्म में शादी नहीं करनी चाहिए।

80% मुसलमानों का कहना था कि मुस्लिम महिलाओं के किसी दूसरे धर्म में शादी करने से रोकना बहुत जरूरी है। 76% ने कहा कि मुस्लिम पुरुषों को भी दूसरे धर्म में शादी नहीं करनी चाहिए। सर्वे में लोगों की राष्ट्रीयता को लेकर भी सवाल पूछे गए थे। सर्वे में यह भी सामने आया कि भारत के लोग धार्मिक सहिष्णुता के समर्थन में तो हैं लेकिन ,वे खुद को दूसरे धार्मिक समुदायों से अलग रखना चाहते हैं।

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